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यह कैसी विडंबना…? जिले को भूल, ग्रीन वे में अटके…

यह कैसी विडंबना…? जिले को भूल, ग्रीन वे में अटके…

अब क्या लिखा जाए और क्या कहा जाए…? वैसे मेरे शहर के लोग बुद्धिमत्ता में किसी से पीछे नहीं है… लेकिन इनकी मति में बात थोड़ी देर बाद समझ में आती है…मेरे शहर के वाशिन्दे अधिकतर कुम्भकर्ण की भांति चिर निंद्रा के सुंदर स्वप्न लोक में विचरण करते रहते हैं… जिस तरह रामायण के युद्ध में कुम्भकर्ण को जगाने के लिए कोई साहस नही जुटा पाया… बाहुबली का दम भर कुछ सैनिकों ने साहस किया और बिगुल, दुम्भदुम्भी,ढोल नगाड़े बजा बजा कर कुम्भकर्ण की निंद्रा को तोड़ा… वहाँ तो एक ही कुम्भकर्ण था, मेरा शहर तो कुंभकर्णो से ठूंस ठूंस कर भरा पड़ा है…आखिर बाहुबली जैसा बल कहाँ से लाये…? पहली का सबक “मुर्गा बोला हुआ सवेरा, बिस्तर छोड़ो जगो उठो” सब भुला चुके हैं.…
मुर्गे बाग लगा लगाकर मर जाए लेकिन मेरे शहर वासियों के कान पर जूं तक नहीं रेंगती…निंद्रा में भी सजग रहने वाले, मेरे शहरवासियों की सजगता की बात ही कुछ निराली है… जिला गया, रेल गई और चली गई हवाई पट्टी… तब भी हम बहुत सजग थे और आज भी है, इसमें कोई संदेह नही …आज ‘ग्रीन फील्ड वे’ के मालपुरा में से निकलने को लेकर जिस तरह का शहर में आंतरिक युद्ध नारदमुनि की संतानों ने छेड़ा शायद ही कोई आमजन या नेता या फिर कोई भी जनप्रतिनिधि अपने आपको इस युद्ध मे भाग लेने से रोक पाया हो… सबके मुंह पर एक ही चर्चा क्या होगा ग्रीन वे का…? निकलेगा या नही निकलेगा….

एक जनप्रतिनिधि महाशय जो कभी तिरंगी पार्टी के सिपहसालार कहे जाते थे (फिलहाल पार्टी से वनवास) वो तो इतने तेज निकले कि ग्रीन वे को लेकर आंदोलन की चेतावनी तक दे डाली….वहीं दूसरी ओर एक दुरंगी पार्टी के नेताजी जो अपने आपको उद्योग प्रकोष्ठ के उधोगपति मानते हैं… उन्होंने ने तो गजब ही कर दिया, तुरन्त सरकारी नुमाइंदों से बात कर बयान जारी कर दिया…यह है मेरे शहर की सजगता की कहानी…(केवल ग्रीन वे को लेकर…)

लेकिन जब सरकार रेवड़ियों की तरह जिले बांटने की तैयारी कर रही थी, तब मेरे भोले भाले शहरवासी निंद्रा को त्यागने के लिए तैयार नहीं थे। जिले के क्या मायने होते है… सबसे बेखबर होकर आगामी चुनावों में सब्जी पूड़ी का इंतजाम करने में जुटे हुए थे…. बुद्धिजीवी वर्ग ने तो मुंह मे मिंटो फ्रेश खाकर जुबान पर ताला जड़ लिया था…जिले की मांग को लेकर कई सत्ताधारी लोग सत्ता के विरुद्ध बोलने में मानहानि समझते थे… तो कई ऐसे भी लोग थे जिन्हें जिले विले से कोई मतलब नहीं था…जनप्रतिनिधियों के तो क्या कहने….मौन…?

आखिर कार नारदमुनि की संताने जो कलयुग में पत्रकार के नाम से जाने पहचाने जाते हैं… वो कहाँ मौन धारण करने वाले थे…बिना इधर की उधर किए बिना तो इनको रोटी भी हजम नही होती…लिखने लगे तो बुद्धिमान लोगों की खोपड़ी के आंतरिक भाग में हलचल पैदा कर दी …आनन फानन में सत्ताधारी व विपक्षी दल के श्रेष्ठ कार्यकर्ताओं ने जिला बनाने की मांग को लेकर एक कागज सौंप इतिश्री कर ली…शनै शनै मालपुरा को जिला बनाओ के आंदोलन की चिंगारी सन सत्तावन की तरह भड़क उठी… लेकिन ना तो यह झांसी थी और ना यहां कोई झांसी की रानी….यह तो बेचारी मालदेव की नगरी थी….जहां केवल माल का ध्यान रखा जाता है… हालांकि माल तो पहले ही विदेशी आक्रांताओं और अंग्रेजों ने लूट लिया….बचा कुचा राजनेताओं ने…
केवल अनशनकारियों और आंदोलन कारियों अर्थात धरनार्थियों के कारण आंदोलन आगे अग्रसर हुआ तो कौन पीछे रहने वाला था…जिला बनाने के लिए बुआजी, फूफाजी सब आंदोलन के अग्निकुंड में कूद पड़े…करीब दो महीने बाद शहरवासियों के कड़े संघर्ष के बाद गहलोत सरकार का मन चुनावी अग्नि से घी की तरह पिघल गया…गहलोत जी ने मालपुरा को जिला बनाने की घोषणा कर दी…

परन्तु गजट नोटिफिकेशन रूपी बीन को काले सांप की बम्बी में डाले रखा…गहलोत जी की बीन चुनाव में कमाल नहीं कर पाई…और गहलोत जी को राजपाट त्यागना पड़ा…नए राजा के रूप में भजन जी का पता नहीं कैसे कुमकुम पत्रिका अर्थात पर्ची से राज्याभिषेक किया जाना प्रस्तावित हो गया…राज्याभिषेक के बाद भजन जी ने प्रदेश का राजपाट संभाल लिया…जिलों के सिंहावलोकन अर्थात रिव्यू के लिए एक कमेटी गठित कर दी…जिसमें हमारे लाडले विधायक जो वर्तमान में सरकार के जलदाय मंत्री है, उन्हें भी कमेटी में सदस्य बनाया गया… इसमें कोई अतिश्योक्ति नहीं कि हमारे लाडले विधायक जी ने जिले के आंदोलन में कोई कमी कसर छोड़ी हो…विधायकी से इस्तीफा देने की बात तक कह डाली थी (अब शायद याद है या नही)… इनका भी कहना है कि मालपुरा जिला बनने की पूरी योग्यता रखता है…किंतु अब पता नही की मालपुरा कब ग्राम पंचायत दूदू की तरह जिले की परीक्षा में उत्तीर्ण होगा…?
अभी हाल ही में राज घराने की एक विदुषी महिला दिया जी, जो सरकार में बड़े पद पर आसीन है.. उन्हें अपने नए बजट की टोकरी में से ग्रीन फूल वाला ‘वे’ निकालकर मालपुरा की झोली में डाल दिया…इस ग्रीन अर्थात हरियाली के चक्रव्यूह में शहरवासी ऐसे फंस गए कि जिले को तो अपनी आइंस्टीन वाली बुद्धि में से विस्मृत कर दिया…नारदमुनि की संतानों ने ऐसा रायता फैलाया की अब शहरवासियों को केवल ग्रीन वे की ही चिंता सता रही है…जिले की नही… हालांकि इनकी चिंता में कोई दम खम तो है नहीं… हरियाली युक्त मार्ग अर्थात ग्रीन वे मालपुरा में से विचरण करता हुआ आगे जाए या ना जाए…इससे इनको कोई मतलब नहीं…लेकिन हरे भरे मार्ग की चिंता इनको सताने लगी है…
पान का टूकड़ा मुँह में चबाते हुए पूरे नगर में मदमस्त हाथी की तरह भ्रमण करने वाले, मेरे शहरवासियों को ज्ञान प्रदान करना मूर्खता का कार्य है… जिला किसे कहते हैं… जिले में कितना विकास होता है… जिले की सीमा में से कितने राष्ट्रीय व राज्य मार्ग निकलते हैं… जिले में कितनी सुव्यवस्थित स्वास्थ्य सेवाएं होती हैं… जिले में कितने सरकारी कार्यालय होते हैं… जिला बनने से कितने लोगों को आजीविका मिलती है…जिला बनने से शहर व ग्रामीण क्षेत्रों में कितना विकास होता है…जिला बनने से कितनी ग्राम पंचायतें नगर निकाय का रूप लेती है…जिला बनने से कितनी उप तहसीले, पूर्ण तहसीले बनती है…जिले में रेल सेवा कैसे प्रारंभ होती है …जिला बनने से विकास को गति कैसे मिलती हैं….जाने कितनी ही ऐसी चीजें है जो जिला बनने से मालपुरा वासियों को स्वतः प्राप्त हो जाती…किंतु कुछ तो नगर पालिका बनने से ही आनंद की परम सीमा को प्राप्त हो गए और कुछ पूर्ण तहसील का तमगा लगाकर….यह सब तो जिला बनते ही वैसे भी प्राप्त हो जाता…मैंने पूर्व में कहा भी है… यह मालपुरावासी है, यह कुम्भकर्णी चिर निंद्रा को तोड़ना नही चाहते…इनको स्वप्नलोक में ही विचरण करने दो, जाग गए तो अपने अधिकारों को लेकर तांडव करने लग जाएंगे….जिला बने या ना बने हम तो ग्रीन वे की हरियाली से ही संतुष्ट हो जाएंगे…ग्रीन वे के लिए आंदोलन करना पड़े तो आंदोलन भी करेंगे…
किसी की निंद्रा में व्यवधान उत्पन्न करने जैसा, मेरा कोई लक्ष्य नहीं था…आप वापस निंद्रा में खो जाइए…(नोट – यहाँ जगाना मना है)

ज़मीन पे चल न सका, आसमान से भी गया… कटा के पर वो परिंदा, उड़ान से भी गया…(हमारा जिला मालपुरा)

व्यंग्यकार – गोपाल नायक
मालपुरा

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