सम्यग्दर्शन के साथ शुचिता ही उत्तम शौच है – मुनि शुभम सागर महाराज
टोडारायसिंह (केकडी)। जैन समाज और चतुर्मास कमेटी अध्यक्ष संतकुमार जैन और प्रवक्ता मुकुल जैन ने बताया कि दसलक्षण पर्व के चौथे दिन दसलक्षण मंडल विधान में पंडित संजीव कासलीवाल ने नित्य नियम के साथ उतम शौच धर्म की पूजन करा कर जैन धर्म के 9वें तीर्थंकर पुष्पदंत भगवान का मोक्षकल्याणक मना निर्माण लाडू चढ़ाया गया।

फिर मुनि श्री के प्रवचन हुए अपने प्रवचन में मुनि श्री 108 शुभम सागर जी महाराज ने पर्वाधिराज दसलक्षण महापर्व के अवसर पर जैन भवन में चतुर्थ लक्षण “उत्तम शौच धर्म” की व्याख्या करते हुए कहा कि शुचिता अर्थात् पवित्रता का नाम है शौच, जो कि लोभ कषाय के अभाव में प्रकट होता है। लोभी, लोभ के कारण पाप कर बैठता है और अपना जीवन नष्ट कर लेता है। हमारे आत्मिक विकास में लोभ कषाय एक विशाल पर्वत के समान बाधक है। इसलिए हमें उत्तम शौच धर्म को अपनाकर अपने जीवन में शुचिता लानी चाहिए| शौच के साथ लगा ‘उत्तम’ शब्द सम्यगदर्शन की सत्ता का सूचक है। इसीलिए सम्यग्दर्शन के साथ होने वाली पवित्रता ही उत्तम शौच धर्म है| शौच धर्म की विरोधी लोभ कषाय मानी गयी है। लोभ को पाप का बाप कहा जाता है, क्यूंकि संसार में ऐसा कौन सा पाप है जिसे लोभी नहीं करता हो। मुनि श्री ने आगे कहा कि पवित्रता का जो भाव है, निर्मलता का जो भाव है, स्वभाविकता का जो भाव है वही शौच धर्म है। जहाँ लोभ का अभाव होता है, वहीँ शौच धर्म है। पाँचों इन्द्रियों के विषय और मन तथा चारों कषाय के विषयों की पूर्ती का लालच ही लोभ कहलाता है और यह देवगति में सर्वाधिक पाया जाता है। सभी कषायों का जनक लोभ होता है। लोभ की अभिव्यक्ति नहीं हो पाती क्योंकि यह अंडरग्राउंड रहता है, बाकी कषायों का पोषण करता रहता है। लोभ का विसर्जन करे बिना धर्म का अर्जन नहीं हो सकता| जो व्यक्ति लोभ में जीता है, उसे वीतरागता की पहचान नहीं हो सकती| भौतिक कचरे के साथ-साथ मन में भरे कचरे को निकालें।
जिसके पास धन है उसका जीवन धन्य नहीं, अपितु जिसके पास धर्म है उसका जीवन धन्य होता है। यह लोभ समता भाव का शत्रु है। अधैर्य का मित्र है, मोह के विश्राम करने की भूमि है, पापों की खान है, आपत्तियों का स्थान है, खोटे ध्यान का क्रीड़ावन है, कलुषता का भंडार है, शोक का कारण है, कलेश का क्रीड़ाग्रह है। अतः लोभ को छोड़ें – जिसने भी अनंतसुख प्राप्त किया है, लोभ छोड़कर ही किया है। बहुत भटक चुके हैं हम कषायों की अँधेरी घाटियों में आओं चलें शौच धर्म के प्रकाश की और ताकि हम शाश्वत सिद्धत्व के आनंद में गोते लगा सकें।