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ज़िला स्तरीय दलित कार्यकर्ता संवाद कार्यक्रम आयोजित कर दलित संगठनों ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के नाम ज्ञापन सौंपा।

टोंक – कल टोंक जिला मुख्यालय पर अम्बेडकर खेल स्टेडियम के सामने अजीम प्रेमजी फाउंडेशन टोंक में जिला स्तरीय दलित कार्यकर्ता संवाद कार्यक्रम आयोजित हुआ।
दलित संवाद कार्यक्रम में जिलेभर से सैकड़ों कार्यकर्ताओं ने भाग लिया। दलित समुदाय की समस्याओं एवं मुद्दों पर अपने विचार रखें।बाबा साहेब डॉ.भीमराव अम्बेडकर जी के जीवन पर प्रकाश डाला।
अम्बेडकर वेलफेयर सोसायटी अध्यक्ष टोंक शिवराज बैरवा, वरिष्ठ उपाध्यक्ष कमलेश चांवला , राजस्थान शिक्षक संघ अम्बेडकर अध्यक्ष सुरेश बंशीवाल, अम्बेडकर विचार मंच टोंडारायसिह अध्यक्ष जीतू खटीक,कौशल वर्मा,अमित थलेटिया, चेतन वर्मा, मनीष बैरवा, शंकर वर्मा, सहवृत पार्षद नरेन्द्र फुलवारिया,पूर्व प्रधानाचार्य ओमप्रकाश महावर, महासचिव मदन मोहन, कृषि अधिकारी देवकरण बैरवा, सरपंच चिरोंज कमलेश वर्मा, हरिराम परसोया,जे पी देवतवाल,ओमप्रकाश वर्मा,श्रवण लाल रैगर, कैलाश गोरखीवाल,हरिराम बैरवा,उड़ान मानव सेवा संस्थान मालपुरा के अध्यक्ष गजेन्द्र बोहरा ने भारतीय संविधान में दिए गए अधिकारों के बारे में विस्तृत जानकारी दी।
उड़ान मानव सेवा समिति मालपुरा के प्रेरक नरेन्द्र कुमार वर्मा ने अनुसूचित जाति/जन जाति के लिए सरकार व्दारा चलाई जा रहें जन कल्याण योजना के बारे में व महिला अधिकारों के बारे जानकारी दी।
जिला स्तरीय दलित कार्यकर्ता संवाद कार्यक्रम के बाद सभी कार्यकर्ताओं ने ज़िला मुख्यालय टोंक में पहुंचकर जिला कलेक्टर चिन्मय गोपाल व अतिरिक्त जिला कलेक्टर शिव चरण मीना को मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के नाम ज्ञापन सौंपा।
राजस्थान दलित उत्पीड़न के आंकड़ों में देशभर में मुख्य स्थान रखता है, दलित हिंसा व उत्पीड़न के प्रकरणों में मुख्यतौर पर जातिगत हिंसा व भूमि विवादों के प्रकरण अत्यधिक देखे गए है, इसके अलावा सरकार की कई कल्याणकारी योजनाओं व कानूनों की मौजूदगी के बावजूद भी दलितों की सामाजिक, आर्थिक, शैक्षणिक स्थिति में आशातीत बदलाव नहीं आया है, जिसके लिए प्रदेश में समुदाय की जरूरतों, स्थिति पर केन्द्रित होकर और अधिक प्रयास करने की आवश्यकता है।
राज्य सरकार दलितों के भूमि संबंधी मामलों पर गौर करें तो हम कृषि भूमि के स्वामित्व में अन्य जातियों के मुकाब लेना के बराबर हैं। खेतों पर गैर दलित जातियों के अतिक्रमण हैं जिसके वर्षों से न्यायालयां में विचाराधीन है खंत दलितों के हैं जांतता कोई और हैं। ग्रामीण क्षेत्र में कृषि भूमि हमारे सामाजिक प्रतिष्ठा का पर्याय हैं तो दूसरी तरफ आजीविका का माध्यम भी है किंतु खेत नहीं होने के कारण हम भूमिहीनता के शिकार हो रहे है। सरकार ने 1975 में दलितों को जो भूमि आवंटित की गई थी 45 वर्षों के बाद भी हमें उनके कब्जे और खातेदारी के अधिकार नहीं मिले कहीं पर गैर दलितों के कब्जे है तो कहीं पर सरकार में आवंट नही निरस्त कर दिए और दलित भूमि हीनता के अभिशाप से तरस्त हैं।
राज्य में दलित अत्याचार के पीछले 3 वर्षों में दर्ज आंकड़े 23293 तथा पश्चिमी राजस्थान में दलित उत्पीड़न व छुआछूत की घटित हिंसक घटनाएँ स्पष्ट करती है कि राज्य में सरकार द्वारा छुआछूत व उत्पीड़न की रोकथाम एवं निवारण के लिए निर्धारित कानूनी प्रावधानों का प्रभावी क्रियान्वयन नहीं करवाया जा रहा है, आकड़ों के अनुसार वर्ष 3 वर्षों में 1700 दलित महिलाओं व बालिकाओं साथ यौन हिंसा / बलात्कार हुआ हैं, तथा 268 दलितों की हत्या की गई है। वर्ष 2022 में हर दिन 2 दलित महिलाओं के साथ बलात्कार व 22 दलितों को पीटा गया है तो हर चौथ दिन 1 दलित की हत्या की गई है। घुमन्तु एवं अर्ध घुमन्तु एवं विमुक्त जातियों एवं दलित समुदाय की सामाजिक सुरक्षा समस्त संसाधनों को समान भागीदारी दलितों के भूमि अधिकारों एवं भूमि हीनता के मुद्दे की मांगे जल्द ही पुरी हो।

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