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वाह ! रे जनता..पहले पेट पूजा… नारे लगाने का काम दूजा…..

वाह ! रे जनता..पहले पेट पूजा… नारे लगाने का काम दूजा…..

चुनावी मौसम के रंग अब शहर में चारो तरफ बिखरने लगे हैं। और प्रवासी नेताजी अपने आपको निखारने में लगे हैं। इस चुनावी मौसम के रंग ने आमजनता को भी बेरंग कर दिया है। बेचारी जनता कभी दुरंगी पार्टी की जिंदाबाद करती है तो कभी तिरंगी पार्टी की और हद तो तब हो जाती है जब यही जनता दुरंगी – तिरंगी को छोड़ चौरंगी के जिंदाबाद के नारे लगाने लगती है। आखिर जनता को भी क्या चाहिए बस भरपेट नाश्ता और नेताजी को भीड़। सरकार रेवड़ियों की तरह जिले बांट रही है लेकिन जनता को जिले से क्या ? सही भी है आखिर पेट की भरपाई तो नेताजी की रैली में ही होती है। अभी हाल ही की बात है एक प्रवासी नेताजी का पदभार ग्रहण कार्यक्रम था। नेताजी भाषण देते रहे, जनता कुर्सियां खाली छोड़कर पेट पूजा में व्यस्त दिखाई दी। वहीं तिरंगी पार्टी के कार्यकर्ताओं ने एक दो दिन पहले प्रवासी नेताजी का जमकर विरोध किया था। तिरंगी पार्टी के कार्यकर्ताओं का कहना था कि थोपा हुआ नेता हमे नही चाहिए। विरोध तो खूब किया लेकिन आलाकमान ने दूरभाष पर सन्देश दिया कि अभी तो कार्यक्रम को सफल बनाओ, बाकी बाद में देख लेंगे। अब आलाकमान का आदेश तो कैसे तिरंगी पार्टी के कार्यकर्ता नही जाते । आखिर कुछ कार्यकर्ता दिखावे के तौर पर मन मार कर कार्यक्रम में शरीक हुए। लेकिन ज्यादातर तिरंगी पार्टी के स्वाभिमानी कार्यकर्ताओं ने कार्यक्रम से दूरी बनाए रखकर अपने स्वाभिमान को जिंदा बनाए रखा। अब साहब यह तो राजनीति है, साम, दाम, दंड और भेद चारों नीतियां नेताजी को जनता को बेवकूफ बनाने के लिए अपनानी ही पड़ती है… (सम्पादकीय)

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