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उष्ट्र रोग निदान शिविर ऊंटों के संरक्षण एवं संवर्धन की दिशा में मील का पत्थर साबित होगा-संयुक्त निदेशक

उष्ट्र रोग निदान शिविर ऊंटों के संरक्षण एवं संवर्धन की दिशा में मील का पत्थर साबित होगा-संयुक्त निदेशक
पशुपालन विभाग द्वारा एक दिवसीय उष्ट्र रोग निदान शिविर का आयोजन
टोंक, 13 दिसंबर। राज्य सरकार के वर्तमान कार्यकाल का एक वर्ष पूर्ण होने के उपलक्ष्य में पशुपालन विभाग द्वारा शुक्रवार को बहुउद्देशीय पशु चिकित्सालय धन्ना तलाई टोंक में एक दिवसीय उष्ट्र रोग निदान शिविर आयोजित किया गया। संयुक्त निदेशक डॉ. छोटू लाल बैरवा ने शिविर में राज्य पशु ऊंट की घटती संख्या पर चिंता जताते हुए बताया कि उष्ट्र रोग निदान शिविर आयोजित कर उष्ट्र वंश की वृद्धि के लिए प्रयास किए जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि उष्ट्र रोग निदान शिविर ऊंटों के संरक्षण एवं संवर्धन की दिशा में मील का पत्थर साबित होगा।
संयुक्त निदेशक बैरवा ने शिविर में पधारे ऊंट पालकों को मुख्यमंत्री मंगला पशु बीमा योजना के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि आप सभी ऊंट पालक मंगला पशु बीमा योजना का अधिक से अधिक लाभ उठाएं। अपने ऊंटों का बीमा अवश्य कराएं, ताकि ऊंट की अकाल मृत्यु होने पर आपको आर्थिक हानि नहीं हो। उन्हांेने ऊंट पालकों को संबोधित करते हुए कहा कि मादा ऊंट के दूध में इंसुलिन का मात्रा पाई जाती है, जो कि मधुमेह रोगी के लिए बहुत आवश्यक है।

ऊंटनी एक दिन में लगभग 5 से 7 लीटर दूध देती है। ऊंटनी के दूध का उपयोग आइसक्रीम बनाने, मिठाइयां बनाने, बच्चों में ऑटिज्म एवं डेंगू जैसे घातक रोगों को ठीक करने में किया जाता है। संयुक्त निदेशक ने बताया कि ऊंट का दूध बहुत पौष्टिक होता है। इसमें तांबा, विटामिन और मिनरल्स पाए जाते है। इसका दूध गाय के दूध से भी पौष्टिक माना जाता है। ऊंट के दूध में ऊर्जा का भंडार होता है।
शिविर में इन्होंने निभाई भूमिका
संयुक्त निदेशक डॉ. बैरवा ने बताया कि ऊष्ट्र रोग निदान शिविर में उपनिदेशक एवं शिविर प्रभारी डॉ. दिलीप गिदवानी के नेतृत्व में डॉ. चंद्रशेखर अरोड़ा, डॉ. सोनल ठाकुर, डॉ. अशोक सैन एवं पशुधन सहायक तब्बसुम बानो, अमित चौधरी, कैलाश चौधरी, प्रवीण चौधरी, सीमा चौधरी, रूपवति वर्मा, कैलाश सैनी एवं अब्दुल मन्नान समेत अन्य कार्मिकों की टीम ने 25 ऊंटों का निःशुल्क उपचार किया। संयुक्त निदेशक ने बताया कि ऊष्ट्र रोग निदान शिविर में ऊंटों में होने वाले सर्रा रोग, तिबरसा रोग, टीबी, कैमल पॉक्स, ऊंट का पागल होना, पाम का टीका, ऊंटों के पेट के कीड़ों का इलाज व ऊंटों में विभिन्न चर्म रोगों का उपचार किया गया।

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