
Chief Editor
“अंधेरा कायम रहे”… यह पंक्तियां पढ़कर आपको “शक्तिमान” धारावाहिक के खलनायक “तमराज किलविश” की याद आ रही होगी… आजकल इस “तमराज किलविश” की भूमिका मालपुरा नगरपालिका निभा रही है, अब केवल डबल इंजन वाले शक्तिमान का इंतजार है… कब शक्तिमान प्रकट हो और कब हमारे शहर का अंधेरा गायब हो…? तो क्या शक्तिमान मालपुरा की सुध लेगा, क्या अंधेरे को फुर्ररर कर पाएगा… जानने का प्रयास करते हैं…!
देवी शंकर सोनी की कलम से….✍️
– पिछले 5 दिन से मालपुरा अंधेरे में डूबा है, अगले कुछ दिनों तक रोशनी की कोई संभावना भी नहीं है… और मजे की बात यह है कि मेरे शहरवासियों को कोई गिला-शिकवा भी नहीं है, क्योंकि “अपन” मालपुरा वालों को “पिछड़ेपन” का तमगा हटाने में कोई दिलचस्पी नहीं है… जब पालिका कार्यालय खुद पांच दिनों से अंधेरे में गोता लगा रहा है तो “अपन” क्यों “मगजमारी” करें…
– चलिए, आपकी बात मान लेते हैं, थोड़ी सी “माथाफोड़ी” कर लेते हैं, धरने-सरने पर बैठ जाते हैं… नारे-वारे लगा लेते हैं, पर इससे होगा क्या… अरे भाईजी जब नगरपालिका स्वयं के कार्यालय के 90 हजार के बकाया बिल जमा नहीं करा सकती तो हमारे हिस्से में आने वाले सार्वजनिक स्थलों, मुख्य बाजारों में लगी स्ट्रीट लाइटों के लगभग 1 करोड़ 30 लाख के बिल कहां से जमा करायेगी… वैसे भी इतनी बड़ी बकाया राशि का नाम सुनते ही नगरपालिका को “भुलबट्टी” आ रही है…
– हम तो बिना मतलब ही बिजली का रोना रो रहे हैं, जब बिजली थी तब कोनसे आम आदमी के समय पर होते थे… आप अभी नगरपालिका कार्यालय जाइए, अधिकारी तो आपको मिलेंगे ही नहीं… कुर्सी पर अंगड़ाई लेते या मोबाइल में लूडो खेलते कर्मचारियों को अपनी समस्या बताइए, उनके द्वारा दिए गए बहुत ही सुंदर, प्यार भरे जवाब सुनिए… “भाईसाहब बिजली कोन आ री, बिजली सुं तो में भी दुखी छा:, थांको काम तो सबस्युं पहल्यां करता”… उनका बेबसी भरा जवाब सुनकर आपका हृदय द्रवित हो जाएगा, आप अपनी समस्या भुलकर उनकी समस्याओं पर चर्चा करने लगेंगे…
– वैसे भी मालपुरा नगरपालिका आजकल नगरपालिका नहीं होकर “बुआजी की पोल” हो गई है, इसमें कोई भी आए और “अंग-मंग-चौक-चंग” खेलकर चला जाए, रोकने-टोकने वाला कोई “धणी-धोरी” नहीं है… क्यों कि नगरपालिका के कार्यकलापों के चलते कोई अधिकारी टिकना ही नहीं चाहता, या यूं कहें कि नगरपालिका की अंदरूनी राजनीति उसे टिकने ही नहीं देती… जब जिम्मेदारों से इस मसले पर सवाल किया जाता है तो सीधा सा जवाब मिलता है, बजट नहीं है, आमद नहीं है, पैसा नहीं आ रहा है, बिल कैसे जमा कराये आदि-आदि…
– अरे, भले मानसो सोशल मीडिया के इस क्रांतिकारी युग में कितना झूठ बोलोगे, बिजली के बिल का पैसा भी आता है लेकिन किसी और मद में खर्च कर दिया जाता है… कौनसे मद में… जैसे नाश्ता-पानी, सजावट, दिखावट वगैरह-वगैरह… बाकी बातें तो पाठक समझ ही गए होंगे… पूरे प्रदेश में हमारे शहर की नगरपालिका की विशेषताओं की मिशाल दी जाती है, लोग कहते हैं ऐसी नगरपालिका हमने कहीं नहीं देखी… जानिए वो विशेषताएं…
– “आम आदमी की समस्याओं का निस्तारण मात्र 6 महीने में कर दिया जाता है… फाइलों पर जमीं धूल हर 2 वर्ष में हटाई जाती है… शहर के फेफड़ों में ऑक्सीजन प्रवाहित करने वाला गांधी पार्क आजकल शौच की ताजा बदबू से महकता रहता है… ब्रह्म तालाब का स्वच्छ नीला जल नालियों के गंदे पानी से मटमैला होकर शहरवासियों को अपनी और ना देखने को मजबूर करता है… बस स्टैंड पर खुले आसमान के नीचे यात्री एयर कंडीशन वातावरण का आनंद लेते हैं… बाजार में बेधड़क विचरण करते आवारा पशु व्यापारियों एवं राहगीरों के सामान पर झपट्टा मारकर अपनी आजादी का एहसास कराते हैं… सुभाष सर्किल के चारों तरफ सब्जी वाले लंबे-चौड़े बाजार को संकरा कर जिम्मेदार नागरिक की भूमिका निभाते हैं… नगरपालिका ठेकेदारों का पेमेंट नहीं करती और ठेकेदार सफाई कर्मियों का… शहर को स्वच्छ रखने वाले कर्मचारियों को अपने वेतन के लिए धरने पर बैठना पड़ता है”…
– इन सारी खुबियों के चलते मालपुरा नगरपालिका का राजस्थान में अनोखा स्थान है और इतनी सारी खूबियों के चलते वह अवार्ड की हकदार है… अब मेरे शहरवासियों के भोलेपन का क्या कहना… बरसात के दिनों में शहर का मुख्य बाजार महावीर मार्ग जीवंत जलाशय का रूप ले लेता है, तब भी हम सकारात्मक सोच के साथ उसका आनंद लेते हैं… जब हम बाजार के झील बनने की शिकायत नहीं करते तो फिर अंधेरा क्या चीज है, बिजली आती-जाती ही अच्छी लगती है… – देखो भाईजी हमारा तो यह भी मानना है कि अंधेरा होगा तभी तो उजाला आएगा… और सबसे महत्वपूर्ण बात, नगरपालिका पर कब्जा जमाए बैठे “तमराज किलविश” भी यही चाहते हैं कि “अंधेरा कायम रहे”… हालांकि हमारे क्षेत्र में एक शक्तिमान भी है लेकिन अब उनको पूरे प्रदेश में अपने चमत्कार दिखाने की जिम्मेदारी मिली हुई है, मालपुरा का नंबर नहीं आता, वह बात अलग है… विकास नाम की उनकी ट्रेन में ना जाने कितने इंजन जुड़ गए हैं लेकिन मालपुरा पहुंचते-पहुंचते इंजन में कोयले खत्म हो जाते हैं…
-हे “शक्तिमान” विकास वाली ट्रेन का विद्युतीकरण कीजिए, ताकि वह मालपुरा पहुंच सके… अंधेरे के सम्राट “तमराज किलविश” के साम्राज्य का पतन कीजिए, अंधेरे को भगाइए, रोशनी की राह दिखाइए… ताकि क्षेत्रवासियों को लग सके की 5 साल तक “गंगाधर” की भूमिका निभाने वाले असली शक्तिमान आप ही है… यानी “गंगाधर ही शक्तिमान” है…!
अन्ततः
फिर तुम्हारी याद का दीपक जला है,
तिम विरह का कुछ क्षण को तो टला है…
स्मृति धूल नहीं पाती समय से,
यह हमारे किन गुनाहों का सिला है…!
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