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याद आई मुंशी प्रेमचंद की कहानी ‘नमक का दारोगा’… धनबल के आगे विवश हुआ कार्यकर्ता..?
मेरे शहर की राजनीति में यह कैसा बड़ा उलट फेर होने जा रहा है। धनबल के आगे दुरंगी पार्टी का कार्यकर्ता जो सदियों से पार्टी की सेवा में तन मन से लगा हुआ है (धन उसके पास है ही नही), आज उसकी फिर उपेक्षा की जाने वाली है। पार्टी को अपनी माँ मानकर सेवा करने वाला जमीनी कार्यकर्ता फिर धनबल का शिकार हो गया। बरसों से जिसने दरी पट्टी उठाने में कोई कमी कसर नही छोड़ी, पूरी तन्मयता और ईमानदारी से पार्टी की सेवा करता रहा, आज उसे फिर मुंशी प्रेमचंद की कहानी ‘नमक का दारोगा’ याद आ रही है। ईमानदारी का तमगा वाला नमक का दारोगा तो धनबल के आगे झुका नहीं, लेकिन पार्टी का सिपाही को आज धनबल के आगे चुप्पी साधनी पड़ रही है। मुंशी प्रेमचंद जी की कहानी का पात्र पण्डित अलोपीदीन आज जीत गया और ईमानदार नमक का दारोगा आज धनबल के आगे पराजित होता हुआ प्रतीत हो रहा है। दुरंगी पार्टी के अध्यक्ष पद के चुनाव को लेकर जो चर्चाएं चल रही थी, आज वो निःशब्द होने जा रही है। पार्टी आलाकमान का फैसला आज फिर पंजे वाली पार्टी की तरह थोपा जाना है। बेचारा आज का नमक का दारोगा यानि पार्टी कार्यकर्ता दर्द की आह भी नही भर सकता, आह लेने का मतलब है पार्टी से बगावत। आज धनबल के हथोड़े की मार खाकर जैसे जमीनी कार्यकर्ता की रीढ़ की हड्डी ही टूट गई…. चारों तरफ चापलूसी शांति व्याप्त है। सब चिर निंद्रा में मग्न है, बेचारा दुरंगी पार्टी का सिपहसालार कहे जाने वाला कार्यकर्ता आह भर रहा है, जिसकी आह निःशब्द रात्रि में दब गई है। आह सुनने वाला जैसे कोई बचा ही नही…. (सम्पादकीय व्यंग्य लेख)