*लॉकडाउन में फंसे, तीन मौतों का दुःख लेकर, ग्रामीणों के सहयोग से अपने घर पहुंचा सर्कस परिवार*
लाम्बाहरिसिंह(टोंक)-
अपनी मर्ज़ी से चले कोई रुख ना बदल पाया।
कभी रुलाया बहुत तो कभी ज़िंदगी ने हंसाया।
कभी सहने को मजबूर करे तो कभी खुद सहती है।
ज़िंदगी एक सर्कस है, खेल तमाशे करती है।
राजस्थान के टोंक जिले के लांबा हरि सिंह कस्बे में मार्च के महीने में अमर ज्योति सर्कस के नाम से सर्कस आया हुआ था।
और लगभग 20 दिन इन्होंने प्रशासन से स्वीकृति लेकर अपनी कला दिखा कर लोगों का मनोरंजन किया और खूब तालियां बटोरी।
फिर सामने आयी कोरोना महामारी की सेकंड लहर और सेकंड लहर के दौरान सरकार ने लॉकडाउन की घोषणा कर दी।
लाकडाउन के कारण अमर ज्योति सर्कस का शो चलना बंद हो गया। लांबाहरिसिंह में 20 दिन के शो के दौरान जो इन्होंने कुछ पैसा कमाया था,
उन पैसों से अपने भोजन पानी की व्यवस्था की। लेकिन 30 आदमियों के परिवार में कहाँ 20 दिन की कमाई का पैसा काम में आ पाता ?
पापी पेट के लिए आए हुए इस परिवार के सामने भोजन पानी का संकट खड़ा हो गया।
बड़े तो फिर भी भूख बर्दाश्त कर लें, लेकिन बच्चे,ओर महिलाएं,उनकी हालत ज्यादा खराब होने लगी,
बड़े भी भूख बर्दाश्त करें तो कब तक ?
उसके बाद में यह पूरा परिवार बेबस हो गया और इनकी हालत को साम्प्रदायिक सौहार्द धार्मिक नगरी लांबाहरिसिंह की जनता ने करीब से देखा तो मदद के लिए लोगों ने हाथ बढ़ाना शुरू किया।
उसी दौरान जिस मैदान पर सर्कस का तंबू लगा था, उसी मैदान पर 2 मई को सर्कस के मुख्य संचालक जॉनी भाई की मृत्यु हो गई । सर्कस का यह परिवार ईसाई धर्म से ताल्लुक रखता था। ग्रामीणों के सहयोग से लगभग 10 हजार की राशि इक्ट्ठा कर आशापुरा नसीराबाद भेजकर जॉनी भाई का अन्तिम संस्कार ईसाई धर्म की पद्धति अनुसार करवाया गया।
इसके बाद 9 मई को उन्हीं के भाई राजकुमार की मृत्यु हो गई। गांव में अफवाह फैल गई की सर्कस वालें इन दोनों भाईयों की मौत कोरोना से हुई है।
तो गांव वालें भी सदमे में आ गये। तुरंत सभी सर्कस वाले लोगों की कोरोना की जांच करवाई गई तो कोरोना की जांच के बाद सभी की रिपोर्ट नेगेटिव आई तो सभी ग्रामीणों ने राहत की सांस ली।
मैदान में जहां पर सर्कस का तंबू लगा था, वहां पर अत्यधिक धूप ओर गर्मी बढ़ने लगी तो सरपंच ने कस्बे के सरकारी स्कूल में प्रशासन से बात कर इनके लिए रहने की व्यवस्था करवायी। विद्यालय के शारीरिक शिक्षक दिनेश कुमार साहू ने स्कूल में हर संभव मदद की।
इन्होंने अपना सामान अपने कपड़े,स्कूल में लाना शुरू किया और लगभग एक महीना इन्होंने स्कूल में बिताया।लेकिन स्कूल में भी क्या भूख के आगे सब कुछ बेबस ही थे। करते भी तो क्या करते ? यहां तक की यह स्वाभिमानी भी थे,यहां पर भी कोई मजदूरी का काम मिलता करते, लेकिन कुछेक लोगों की मजदूरी से क्या होता?
गांव वालों को पता चला तो उप सरपंच संजय कुमार पाराशर ने फेसबुक पर एक पोस्ट डालीऔर उस पोस्ट के माध्यम से लोगों ने मदद के लिए हाथ बढ़ाएं। किसी ने गेहूं,किसी ने दाल, किसी ने चावल, किसी ने,दूध,चीनी, मिर्च- मसाला_घोड़े के लिए चारा आदि आवश्यक वस्तुओं की व्यवस्था गांव वालों ने करी।
इसी बीच एक भामाशाह ने लगभग 6000 रुपये की मदद से राशन सामग्री की व्यवस्था करवाई।
लोगों ने अलग-अलग ग्रुपों के माध्यम से भी इनके भोजन पानी की व्यवस्था की गई।
जेसे-तैसे जिंदगी स्कूल में कट रही थी। तभी इनका एक और सदस्य विजय जो जॉनी ओर राजकुमार का बड़ा भाई था 27 मई को भगवान को प्यारा हो गया,जिससे यह लोग काफी टूट गये।
प्रिंट मीडिया और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के माध्यम से
इन लोगोें को मदद दिलाने के लिए खबरें प्रकाशित हुई ।
लेकिन सरकार और प्रशासन की ओर से इन लोगों को कोई मदद नहीं मिली।
3 मौतों का दुख यह सर्कस का परिवार सहन नहीं कर पाया सभी लोग डरे सहमे हुए थे।
मन में बुरे-बुरे विचार आने लग गए।
तथा सरपंच,सी.आर. और गांव के लोगों से उन्होंने मदद मांगी कि कैसे भी हो हमें हमारे घर तक पहुंचा दिया जाए।
इनका घर भी कोई पास में नहीं था।मध्य प्रदेश के धार जिले में प्रीतमपुर इनका गांव था,काफी लंबी दूरी थी।
ऊपर से सर्कस का सामान भी बहुत ज्यादा था।
ग्राम पंचायत लाम्बाहरिसिंह सरपंच व सी.आर.ने उच्च अधिकारियों से बातचीत की लेकिन सरकार और प्रशासन के कानों पर जूं तक नहीं रेंगीऔर इस अमर ज्योति सर्कस के परिवार को कोई सहायता नहीं मिली।
सरकार की कोरोना गाइडलाइन का भी पालन करना जरूरी था।लंबी दूरी होने के कारण किराया बहुत ज्यादा था लेकिन फिर भी गांव के लोगों ने इन लोगों को अपने घर पहुंचाने का जिम्मा उठाया।
और लगभग 50 हजार रुपए की राशि एकत्रित की, उप सरपंच संजय पाराशर और नोरत मल वर्मा चंदा इकट्ठा करने में लग गये।
महेंद्र अग्रवाल नें गाड़ियों की व्यवस्था करवाई।शुरुआत में 3 गाड़ियां कैंसिल हो गई और अंत में 2 गाड़ियां मिली जिसमें से 1 गाड़ी में सर्कस का आधा सामान तथा परिवार के लगभग 20 सदस्यों को महिलाओं सहित भेजा गया तथा दूसरी गाड़ी में सर्कस का बाकी सामान भेजा गया। जाने से पहले सर्कस परिवार ने अपने ईश्वर ईसा मशीह से प्रार्थना की। लांबाहरिसिंह के जनसामान्य से लेकर ऊंचे घराने के व्यक्ति तक का संबंध यू कहे तो इस सर्कस परिवार से जुड़ गया था। लगभग 3 महीने रहा यह परिवार गांव के लोगों से काफी घुल मिल गया था।
जब स्कूल से यह ट्रकों में सामान भर रहे थे तब नोरतमल और वार्ड पंच संपत मेघवंशी स्कूल की कमरे में सफाई व्यवस्था देखने गए तो स्कूल के ब्लैक बोर्ड पर कुछ पंक्तियां लिखी हुई देखी जो इस सर्कस परिवार के द्वारा गांव वालों के लिए लिए लिखी गई जो इस प्रकार है
” यहोवा मेरा चरवाह है। प्रभु यीशु मसीह ।
इस लांबाहरिसिंह गांव वालों को सरपंच सर, पत्रकार अंकल और सभी गांव के लोगों को बहुत आशीष देना”।
गांव वालों का तो कहना ही क्या, संकट काल के दौरान जो मानवता की मिशाल पेश की वह काबीले तारीफ है।
आज इस अमर ज्योति सर्कस परिवार को अपने गांव पहुंचाकर, गांव वाले भी काफी शांति महसूस कर रहे हैं।
अपने तीन लोगों को खोकर यह परिवार अपनी आंखों में दुःख को समेटकर,अपने चेहरे पर घर जाने की हल्की सी मुस्कान के साथ लाम्बाहरिसिंह की जनता के लिए प्रार्थना दुआएं करता चला गया। तथा सकुशल अपने घर पर पहुंच गया।
अमर ज्योति सर्कस कुछ लोगों से सीखकर गया, कुछ को सीखाकर गया।
अपने गांव अपने निवास पर पहुंचकर लाम्बा हरिसिंह की जनता का धन्यवाद किया। ट्रकों को रवाना करते समय सरपंच प्रतिनिधि रमेश चंद वैष्णव, महेंद्र अग्रवाल, दिनेश कुमार साहू, महावीर टेलर,श्रवण कुमार,विजय गोतम, वार्ड पंच संपत मेघवंशी,सरपट सोनी सहित कई ग्रामीण मोजुद रहें।
ग्राम पंचायत सरपंच लाम्बाहरिसिंह ने बताया कि
प्रशासन को बार-बार अवगत करवाने के बाद भी प्रशासन की ओर से अमर ज्योति सर्कस के इस परिवार कोई सहायता नहीं मिली, तो ग्रामीणों ने चंदा इकट्ठा कर इनको इनके निवास स्थान प्रीतमपुर,धार, मध्य प्रदेश पहुंचाया।