कृत्रिम गर्भाधान चल प्रयोगशाला अवि-मेल पहुंची भेड़-पालकों के द्वार
लैब ऑन व्हील्स का ग्रामीणों और पशुपालकों के बीच उत्सुकता
मालपुरा – केंद्रीय भेड़ एवं ऊन अनुसंधान संस्थान, अविकानगर द्वारा विकसित स्टेट ऑफ़ दी आर्ट भेड़ कृत्रिम गर्भाधान चल प्रयोगशाला अवि मेल जब मालपुरा और फागी तहसील के गाँवों में भेड़पालकों के द्वार पहुंची तो ग्रामीणों में एक अत्याधुनिक केरावैन जैसी गाड़ी को देखने की उत्सुकता रही। दरअसल संस्थान के वैज्ञानिक निदेशक अरुण कुमार तोमर के साथ भेड़पालकों के द्वार पर कृत्रिम गर्भाधान हेतु मद समकालन के लिए अवि मेल से दिनांक 6 फरवरी, 2024 की सुबह मालपुरा तहसील के गाँवों डेंचवास एवं बस्सी तथा फागी तहसील के गाँव धुवालिया पहुंचे थे। इस अवसर पर तीनों गाँवों के 4 पशुपालकों की 84 भेड़ों में कृत्रिम गर्भाधान हेतु मद-समकालन के लिए अविकासिल स्पंज लगाए गए। इसके अलावा 07 फरवरी को सोडा एवं जयसिंहपुरा गाँव में 71 भेड़ों में मद-समकालन किया गया। मद-समकालन एक ऐसी तकनीकी है जिसके द्वारा रेवड़ के पशुओं को वांछित समय पर एक साथ गर्मी में लाया जा सकता है, जिसके लिए अविकानगर संस्थान द्वारा प्रोजेस्टेरोन हॉर्मोन युक्त स्पंज अविकेसील-एस विकसित किये गए हैं।
इन भेड़ों में 12 दिन के बाद नस्ल सुधार के लिए किसानों की मांग पर संस्थान द्वारा विकसित भेड़ अविशान एवं पाटनवाड़ी भेड़ के सीमन का प्रयोग कर कृत्रिम गर्भाधान किया जायेगा। इस दौरान संस्थान निदेशक डॉ. अरुण कुमार तोमर के साथ डॉ. महेश चंद, प्रधान वैज्ञानिक एवं पूर्व सयुंक्त निदेशक (प्रसार शिक्षा), भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान, इज्जतनगर, बरेली भी मौजूद रहे। निदेशक डॉ. तोमर ने बताया कि विकसित अवि मेल देश में भेड़ों की नस्ल सुधार की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है जिसका उपयोग राज्य सरकारों के पशुपालन विभाग, अनुसंधान संस्थानों, गैर सरकारी संगठनों और उद्यमियों द्वारा भेड़ों में कृत्रिम गर्भाधान के माध्यम से नस्ल सुधार कार्यक्रमों के लिए किया जा सकता है। ज्ञात रहे भारत सरकार के पशुपालन एवं डेरी विभाग की राष्ट्रीय पशुधन मिशन परियोजना (एनएलएम) अन्तर्गत विकसित अवि मेल भेड़ और बकरी की उत्पादकता बढ़ाने के उद्देश्य से मद समकालन और कृत्रिम गर्भाधान जैसी सहायक प्रजनन तकनीकों का उपयोग पशुपालक के द्वार पर करने हेतु विश्व में पहली बार विकसित की गयी चल कृत्रिम गर्भाधान प्रयोगशाला है।
एनएलएम परियोजना के प्रधान अन्वेषक और अवि मेल को डिज़ाइन करने वाले वैज्ञानिक डॉ. अजित सिंह महला ने बताया कि गाय, भैंस और अन्य पशुधन प्रजातियों के विपरीत, भेड़ में कृत्रिम गर्भाधान के लिए हिमीकृत वीर्य का उपयोग सफल नहीं होने के कारण इस तकनीक का आज तक व्यापक रूप से उपयोग नहीं किया जा सका है। भेड़ में कृत्रिम गर्भाधान के लिए मेंढे का तरल शीतित सीमेन (4oC या 15oC) ही प्रभावी है जिसे संग्रह के 8-10 घंटों के अंदर ही उपयोग करना होता है, जिससे यह तकनीक सीमेन स्टेशन या प्रयोगशाला के 25-30 किमी के दायरे में ही सिमट कर रह जाती है। । इसलिए इस तकनीक की व्यापक उपयोग करने और बड़े पैमाने पर भेड़ नस्ल सुधार के लिए तरल शीतित वीर्य के साथ कृत्रिम गर्भाधान को प्रभावी ढंग से नियोजित करने के लिए एक व्यावहारिक प्रणाली की आवश्यक थी, जिसके लिए अवि मेल को विकसित किया गया जो कि मेंढे से सीमेन के संग्रह, मूल्यांकन और प्रसंस्करण के लिए अत्याधुनिक सुविधाओं और उपकरणों से युक्त है और उच्च गुणवत्ता के मेढ़ों से स्वच्छ सीमेन संग्रहण और रोगाणुरहित वातावरण में इसका प्रसंस्करण किसान के द्वार पर किया जा सकता है। इस सेटअप के साथ, दूरदराज के इलाकों में, यहां तक कि घुमन्तु पशुचारकों के भेड़ों के झुंड में भी कृत्रिम गर्भाधान तकनीक का उपयोग करना संभव है। अत्याधुनिक लेबोरेटरी के अलावा बड़ी LED टीवी स्क्रीन से लैस अवि मेल को ऑडियो-विज़ुअल के माध्यम से किसानों के लिए जागरूकता शिविर आयोजित करने के लिए भी डिज़ाइन किया गया है। संस्थान द्वारा विकसित इस तकनीक को सराहते हुए डॉ. महेश चंद्र ने कहा कि भेड़ों में कृत्रिम गर्भाधान के जरिये नस्ल सुधार के लिए व्यापक स्तर पर कार्य करने के लिए अवि मेल का मॉडल ही कारगर हो सकता है जिसे देश में अधिक मांस की मांग को देखते हुए देशभर में अपनाने कि आवश्यकता है। उन्होंने संस्थान के द्वारा पशुपालकों के हितों के लिए फील्ड स्तर पर किये जाने वाले कार्यों की प्रशंसा की। पशु फिजियोलॉजी और बायोकेमिस्ट्री विभागाध्यक्ष एवं फार्मर फर्स्ट परियोजना के प्रधान अन्वेषक डॉ. सत्यवीर सिंह डांगी के मार्गदर्शन एवं समन्वय में भेड़ एवं बकरी पालकों के लिए मद-समकालन एवं कृत्रिम गर्भाधान जागरूकता शिविर भी आयोजित किया गया। इस मौके पर डॉ. अरविन्द सोनी एवं डॉ. सृष्टि सोनी ने पशुपालकों से बात कर संस्थान की नई तकनीकियों के बारे में जानकारी दी। संस्थान के सुरेंद्र सिंह राजपूत, शिवेंद्र शर्मा, गणेश राम जाट, विकास सिहाग, राकेश, विष्णु, देवेंद्र गुर्जर आदि ने तकनीकी सहयोग प्रदान किया।