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केंद्रीय भेड़ एवं ऊन अनुसंधान संस्थान अविकानगर में एक दिवसीय कार्यशाला का हुआ आयोजन।

 

केंद्रीय भेड़ एवं ऊन अनुसंधान संस्थान अविकानगर में एक दिवसीय कार्यशाला का हुआ आयोजन।

मालपुरा –

केंद्रीय भेड़ एवं ऊन अनुसंधान संस्थान, अविकानगर में आज ‘भेड़ उद्यमों में कृषि व्यवसाय अभिपोषण एवं प्लास्टिक के एवज में प्राकृतिक रेशों के उपयोग’ विषय पर एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया। कार्यक्रम के मुख्य अथिति डॉ डी बी शक्यवार, निदेशक, राष्ट्रीय प्राकृतिक फाइबर इंजीनियरिंग और प्रौद्योगिकी संस्थान, कलकता ने प्लास्टिक के विकल्प में ऊन और जूट जैसे रेशों के उपयोग पर जोर दिया। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए अविकानगर संस्थान के निदेशक डॉ अरुण कुमार तोमर ने भेड़ एवं बकरी आधारित व्यवसायों की वर्तमान परिदृश्य में उपयोगिता और वृद्धि की संभावनाओं पर प्रकाश डाला।

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद की विभिन्न संस्थानों में कृषि व्यवसाय अभिपोषण कार्यक्रम का समन्यव कर रहे वैज्ञानिक डॉ विक्रम सिंह विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित रहे। कार्यशाला में संस्थान के कृषि व्यवसाय अभिपोषण केंद्र से जुड़े देश भर के 50 से अधिक उद्यमियों ने भाग लिया और अपनी उद्यमिता यात्रा में संस्थान के योगदान के लिए धन्यवाद दिया।

कार्यक्रम में अतिथियों तथा उद्यमियों ने संस्थान के सहयोग से विकसित ऊन के सेपलिंग बैग की पर्यावरण संरक्षण की दिशा में एक महत्वपूर्ण तकनीकी के रूप में सराहना की। कार्यशाला में संस्थान से नए जुड़ रहे 5 व्यवसायी संस्थानों और उद्यमियों ने आपसी सहयोग के लिए अविकानगर संस्थान के समझौता करार (MoU) पर हस्ताक्षर किए गए।

संतोष महात्में, सलाहकार, भेड़पाल शेतकारी उत्पादन संस्थान, महाराष्ट्र ने भेड़पालन एवं पोषण तकनीकियों और  धर्मपाल गढ़वाल, अमलान ऑर्गेनिक, राजस्थान ने शॉल उत्पादन में तकनीकी सहयोग के लिए संस्थान के साथ MoU किया।

कार्यशाला में कोलकाता एवं अविकानगर संस्थान के विषय विशेषज्ञ डॉ एस. देबनाथ, डॉ. अजय कुमार, डॉ एल. अम्मायप्पन ने एकल उपयोग प्लास्टिक के विकल्प के रूप में प्राकृतिक रेशों विशेष रूप से जूट और ऊन के उपयोग पर किए गए शोधों और विकसित उत्पादों पर व्याख्यान प्रस्तुत किए।

कार्यक्रम के आयोजक सचिव डॉ विनोद कदम ने कार्यक्रम के शुरू में संस्थान के कृषि व्यवसाय अभिपोषण केंद्र की यात्रा और संस्थान द्वारा तकनीकी सहयोग द्वारा युवा उद्यमियों के उत्थान में केंद्र की महत्ता पर प्रकाश डाला। डॉ अजित सिंह महला और डॉ अरविंद सोनी, वैज्ञानिक कार्यशाला के सह संयोजक थे। कार्यक्रम में मंच संचालन डॉ लीला राम गुर्जर द्वारा किया गया।

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