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नगरपालिका की कार्यशैली पर सवाल — नियमों से ऊपर पट्टा या पट्टों से ऊपर नियम?

“रेरा के नियम फेल या पालिका का खेल ? सबसे बड़ा सवाल – रेरा के विपरीत बने पट्टों का क्या होगा ?”

नगरपालिका की कार्यशैली पर सवाल — नियमों से ऊपर पट्टा या पट्टों से ऊपर नियम?

मालपुरा (टोंक)। नगर पालिका मालपुरा में पट्टों को लेकर एक के बाद एक अनियमितताएँ उजागर हो रही हैं। इंद्रा कॉलोनी के भूखण्ड संख्या 150 का पट्टा नियम विरुद्ध जारी होने पर डीएलबी ने धारा 73 (बी) के तहत तत्काल निरस्तीकरण के निर्देश जारी किए और पालिका ने पट्टा रद्द कर दिया। परंतु यह सिर्फ़ शुरुआत थी। अब दूदू रोड स्थित प्रस्तावित कॉलोनी में पट्टों की प्रक्रिया ने नगर पालिका की कार्यशैली, पारदर्शिता और रेरा अनुपालन पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
सूत्रों के अनुसार दूदू रोड स्थित इस प्रस्तावित कॉलोनी का न रेरा पंजीकरण करवाया गया, न कॉलोनी के विकास से जुड़े सभी मापदंड पूरे किए गए। और न ही बिजली, पानी, नाली, सड़क व सीवरेज जैसी मूलभूत सुविधाएँ उपलब्ध कराई गईं।
इसके बावजूद कॉलोनाइजर ने जमीन को काटकर प्लॉट बेच दिए। सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि पालिका प्रशासन ने रेरा अधिनियम के स्पष्ट प्रावधानों को दरकिनार करते हुए इन प्लॉटों पर पट्टे जारी भी कर दिए। रेरा नियमों के अनुसार बिना आवासीय कॉलोनी का बिना रेरा रजिस्ट्रेशन व कॉलोनी मानकों को पूरे किए बिना कोई भी नगर निकाय पट्टा जारी नहीं कर सकता, लेकिन यहां ठीक विपरीत हुआ।

शहर में यह चर्चा जोर पकड़ चुकी है कि जब नियम इतने स्पष्ट थे, तब पालिका ने रेरा नियमों की अनदेखी करते हुए पट्टे जारी करने का कदम क्यों उठाया? आखिर यह कदम किस दबाव में, या किसके आदेश पर उठाया गया?

इसी दौरान, संभागीय आयुक्त अजमेर द्वारा उक्त भूमि पर स्थगन आदेश जारी किया गया। स्थगन आदेश के बाद किसी भी प्रकार का निर्माण या गतिविधि प्रतिबंधित होती है, लेकिन यहां स्थगन आदेश के बावजूद कॉलोनी में सड़क निर्माण का कार्य बेख़ौफ़ किया गया। स्थानीय लोगों का कहना है कि सड़क का निर्माण दिनदहाड़े होता रहा और पालिका प्रशासन मौन रहा। ना कोई रोक-टोक, न निरीक्षण, न कार्रवाई।

नगरवासियों का आरोप है कि यदि कोई सामान्य नागरिक अपने घर की छोटी सी दीवार भी खड़ी कर दे, तो पालिका तुरंत नोटिस थमा देती है या जेसीबी लेकर पूरे दस्ते के साथ मौके पर पहुँच जाती है। लेकिन यहां कॉलोनी में सड़क बन गई, प्लॉट बिक गए और पट्टे जारी हो गए और प्रशासन की नजरें हर बार की तरह दूसरी दिशा में रहीं।

लोग सवाल उठा रहे हैं कि क्या पालिका प्रशासन रेरा अधिनियम से अनभिज्ञ था, या फिर नियमों की यह अनदेखी किसी मिलीभगत का परिणाम है? रेरा का उद्देश्य खरीदारों को सुरक्षा देना है, लेकिन जब कॉलोनी ही रेरा में पंजीकृत नहीं और पट्टे भी नियमविरुद्ध जारी हो जाएं, तो आम नागरिक न्याय कहाँ खोजे?

इसके साथ सबसे बड़ा सवाल यह है कि अब पहले से जारी हुए इन पट्टों का क्या होगा?
क्या ये पट्टे निरस्त किए जाएंगे?
क्या खरीदारों की मेहनत की कमाई दांव पर लग जाएगी?
क्या रेरा अधिनियम केवल कागज़ पर चलने वाला नियम है?

नगर में अब यही चर्चा है कि यदि यह सिर्फ़ लापरवाही होती, तो स्थगन आदेश के बाद निर्माण रुक जाता। लेकिन सड़क निर्माण का कार्य चलता रहा, इससे संदेह और गहरा हो गया है। सवाल हर ओर एक ही गूंज रहा है “रेरा के नियम फेल या पालिका का खेल?”

शहर अब पालिका प्रशासन से स्पष्ट जवाब चाहता है, किसकी अनुमति से प्लॉट बेचे गए, किसने पट्टे जारी किए, और रेरा नियमों को किन आधारों पर नज़रअंदाज़ किया गया?

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