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मोहम्मद तौफीक नकवी – एक समर्पित चिकित्सा सेवक और सामाजिक कार्यकर्ता (जन्मदिन पर विशेष…)
नाम: मोहम्मद तौफीक नकवी
पिता का नाम: श्री शराफत अली
स्थायी निवास: मोहल्ला सादात, मालपुरा जिला टोंक (राजस्थान)
प्रारंभिक जीवन एवं पृष्ठभूमि:
मोहम्मद तौफीक नकवी, मालपुरा के मोहल्ला सादात में जन्मे एक सादगीपूर्ण, संवेदनशील और सेवा-भाव से ओतप्रोत व्यक्तित्व हैं। इनके जीवन की जड़ें गहरी मानवीय मूल्यों से जुड़ी हैं, जो उन्होंने अपने पारिवारिक परिवेश और संस्कारों से पाई।
चिकित्सा क्षेत्र में योगदान:
पिछले 20 वर्षों से तौफीक नकवी जी महात्मा गांधी अस्पताल में उच्च पद पर कार्यरत हैं। इस लंबे कार्यकाल में इन्होंने न केवल चिकित्सा सेवाओं में उत्कृष्ट योगदान दिया, बल्कि मरीजों के प्रति मानवीय संवेदना और सेवा-भाव को प्राथमिकता दी।
इन्हें उनकी मेहनत, लगन और सरल व्यवहार के लिए अस्पताल में आने वाले मरीजों और सहकर्मियों द्वारा बेहद सम्मान और स्नेह मिलता है।
सामाजिक सेवा:
तौफीक नकवी एक ऐसे व्यक्तित्व हैं जो परदे के पीछे रहकर समाज सेवा को अपना धर्म मानते हैं।
खासकर गरीब, बेसहारा और असहाय मरीजों की सेवा को वे सबसे बड़ा सवाब मानते हैं।
उनका मानना है कि, “जब मैं किसी पीड़ित की खिदमत करता हूँ, उन्हें मानसिक रूप से मजबूत करता हूँ, तो मेरे दिल को एक अलग ही सुकून और खुशी मिलती है।”
वे बिना किसी प्रचार या दिखावे के, चुपचाप जरूरतमंदों की मदद करते हैं – यही उनकी पहचान है।
व्यक्तिगत विशेषताएं: सादा जीवन, उच्च विचार, सेवा को पूजा मानने वाला दृष्टिकोण, सभी धर्मों व वर्गों के लोगों के प्रति समान भाव विनम्र, कर्मठ और मृदुभाषी व्यक्तित्व।
सम्मान और पहचान:
तौफीक नकवी किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। उन्होंने अपने कर्म, सेवा और व्यवहार से समाज में विशेष पहचान बनाई है। समाज उन्हें एक आदर्श सेवक और सच्चे इंसान के रूप में देखता है। उत्कृष्ट सेवाओं के लिए इनको संस्था ने कई बार सम्मानित भी किया है।
जन्मदिवस पर विशेष:
उनके जन्मदिवस के अवसर पर जब हमने उनसे विशेष बातचीत की, तो उनका उत्तर सादगी से भरा था।
उन्होंने अपने जीवन का उद्देश्य स्पष्ट करते हुए कहा: “ईश्वर ने जो शक्ति और अवसर दिया है, उससे लोगों की सेवा करना ही मेरा सबसे बड़ा सौभाग्य है।”
अन्ततः :
मोहम्मद तौफीक नकवी आज की उस भीड़ में एक ऐसा नाम हैं, जो निस्वार्थ सेवा, मानवता और कर्म की मिसाल हैं।
उनका जीवन हमें सिखाता है कि सच्ची सेवा बिना शोर के भी की जा सकती है — और वही सेवा सबसे पवित्र होती है।