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अभिमान को त्यागकर विनम्र बनो : मुनि शुभम सागर महाराज

अभिमान को त्यागकर विनम्र बनो : मुनि शुभम सागर महाराज
रिपोर्टर उमाशंकर शर्मा टोडारायसिंह (केकडी)। जैन  मुनि  शुभम सागर महाराज ने कहा कि मनुष्य को अभिमानी नहीं बल्कि विनम्र होना चाहिए। भगवान राम ने नम्रता से ही सबको अपनाया था। वहीं, अहंकार के चलते ही रावण न सिर्फ अकेला रह गया था, अपितु उसका नाश भी हुआ था। शुभम सागर  जी महाराज श्री सहस्त्रफणी पार्श्वनाथ दिगंबर जैन मंदिर  जैन भवन में दक्षलक्षण पर्व के दूसरे दिन उत्तम मार्दव धर्म पर प्रवचन कर रहे थे।
उन्होंने कहा कि आज का मनुष्य हर जगह अपने सम्मान और अभिमान की कीमत तय करता है और इसी से अहंकार का जन्म होता है। कठोर चीज जल्दी नष्ट हो जाती है जबकि मुलायम चीज देर तक रहती है। जैसे बांस अकड़ता है तो तूफान में गिर जाता है। वहीं, मुलायम घास हमेशा लहलहाती रहती है। मोक्ष प्राप्ति के लिए अंदर से धर्म धारण करो। बच्चों को पढ़ाई के साथ-साथ विनय के संस्कार भी दो। हम कोमल बनेंगे तो परमात्मा के ह्रदय में रहेंगे और पत्थर की तरह कठोर बनेंगे तो ठोकर खाएंगे।
मुनि श्री ने कहा कि ज्ञानी पुरुष कभी भी सांसारिक क्षणिक वस्तु के प्रति कभी भी गर्व नहीं करता है। सच्चा पुरुष हमेशा नम्र होता है। विद्या इत्यादि का घमंड या श्रीमानी का घमंड न करके हमेशा छोटे बड़े जीवों के प्रति उपकार की दृष्टि रखता हैं, जैसे नारियल का झाड़ स्वयमेव ऊँचा रहता है और अपने सिर पर श्रीफल का बोझा लेकर आप स्वयमेव न खाकर दूसरे जीवों के प्रति नम्र होकर गर्मी के दिनों में मीठा-२ पानी पिलाने की याचना करता है। आम का झाड़ बहुत से फल अपने से उत्पादन करता है परंतु उन फलों को स्वयमेव न खाकर गर्मी में नम्र होकर अर्थात् झुककर दूसरों को दे देता है।
आजकल के अहँकारी लोग-थोड़ी सी क्षणिक सम्पत्ति मिल जाय तो वे आसमान से ज्यादा ऊँचे बन जाते हैं और किसी मामूली या धर्मात्मा तथा सज्जन पुरुष को देखकर उनकी कभी विनय या अपस में जुहार इत्यादि करना तथा हाथ जोड़ने में अपना अपमान समझते हैं। इसलिए दूसरे लोग भी बात-बात में उनका तिरस्कार करते हैं।
यानी मनुष्य देव शास्त्र गुरु के प्रति विनय करने मे भी हिचक जाता है। कदाचित् मंदिर में भगवान के दर्शन करने जाय तो मस्तक झुकाकर नमस्कार करना अनिवार्य होता है। इसलिए मंदिर या सधु सत्पुरुषों के पास भी नहीं जाता है। जैन समाज और चतुर्मास कमेटी अध्यक्ष संतकुमार जैन और प्रवक्ता मुकुल जैन ने बताया कि प्रात: ध्यान के बाद अभिषेक, शांतिधारा और नित्य नियम पूजन के बाद दसलक्षण विधान की पूजन पंडित संजीव कासलीवाल द्वारा करवाया गया।

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