भीपुर गांव में बारिश ने जमकर किया तांडव
आधा गांव मलबे के ढ़ेर में हुआ तब्दील, ग्रामीण पलायन को हुए मजबूर
लाखों रुपयों का हुआ नुकसान, जनप्रतिनिधियों और प्रशासन ने नहीं ली सुध
मालपुरा (टोंक)। जिले के मालपुरा उपखण्ड क्षेत्र में गुरुवार देर रात आई मूसलाधार बारिश ने क्षेत्र में चारों तरफ तबाही मचा दी। बारिश ने जो कहर बरपाया उसे तीन दिन बाद भी लोग नही भूल पाए हैं। कई परिवार रातों रात फुटपाथ पर रहने को मजबूर हो गए। बारिश के कारण आमजन और व्यापारियों को लाखों रुपयों का नुकसान उठाना पड़ा। घर के घर तबाह हो गए, घरेलू सामान मलबे के नीचे दब जाने से लोगों के भूखे मरने की स्थिति पैदा हो गई।
जानवरों के लिए चारा नही बचा, कई जानवर बारिश के तेज बहाव में बह गए। दो दो मंजिला दुकानें और घर मलबे के ढेर में तब्दील हो गए। खेत खलिहान पानी से जलमग्न हो गए और किसानों की फसल बर्बाद हो गई। शनिवार को जलदाय मंत्री व स्थानीय विधायक कन्हैया लाल चौधरी ने एक दर्जन से अधिक गाँवो का दौरा कर हालातों का जायजा लिया। साथ ही जिला कलेक्टर टोंक व स्थानीय प्रशासन ने भी गांवों का दौरा कर बारिश से हुए नुकसान की जानकारी ली।
जलदाय मंत्री कन्हैया लाल चौधरी ने मीडिया को बताया कि बालाजी महाराज की मेहरबानी से क्षेत्र में अच्छी बारिश हुई है, लेकिन क्षेत्र में कोई बड़ा नुकसान या जनहानि नही हुई है। अगर स्वार्थवश मानव प्रकृति को नुकसान पहुंचाता है तो प्रकृति भी अपना असर दिखाती है। क्षेत्र में ही नही पूरे राजस्थान में अच्छी बारिश हुई है। अगर जनता को कोई तकलीफ या समस्या होती है तो हमारी सरकार और प्रशासनिक अधिकारी जनता को समस्या से निजात दिलाने के लिए कार्य कर रहे हैं।
अगर मालपुरा तहसील के भीपुर गांव की बात की जाए तो गत गुरुवार की देर रात बारिश ने गांव में ऐसा तांडव किया कि आधा गांव मलबे के ढ़ेर में तब्दील हो गया। फोटो से अंदाजा लगा सकते हैं कि ग्रामीणों को बारिश के कारण कितना नुकसान उठाना पड़ा है। भीपुर गांव में बारिश ने ऐसा तांडव मचाया कि याद करने पर गांव वालों की आंखे नम हो जाती है। भीपुर गांव जैसा कहर शायद ही बरसात ने दूसरे गांव में बरपाया हो। एक नही, दो नही, तीन नही, घरो के घर मलबे के ढेर में तब्दील हो गए। बारिश का कहर ऐसा था कि कई मूक जानवरो को अपने जीवन से हाथ धोना पड़ा है।
खाने पीने व पहनने की चीजो के साथ साथ घरेलू सामान मलबे में दब जाने और घरों के ढह जाने से लोगों ने गांव से पलायन करना शुरू कर दिया है। आशियाना उजड़ जाने के बाद लोग डिग्गी नुक्कड़ में किराए के मकानों में रहने के लिए विवश हो गए है। अगर कहीं कुछ बचा है तो वो है गांव वालों की आंखों में आंसू ओर मलबे के ढेर के अवशेष। गांव वालों ने बताया कि इतना कुछ होने के बाद भी न तो कोई जनप्रतिनिधि आया ओर न ही प्रशासन का कोई नुमाइंदा सुध लेने आया है। केवल तहसीलदार राहुल पारीक लावा दौरे के दौरान गांव में गए थे लेकिन पूरे गांव का मौका निरीक्षण नही करने से ग्रामीणों में आक्रोश है। गांव वालों ने बताया कि तहसीलदार साहब एसडीएम साहब को लाने के लिए कहकर गए थे, लेकिन आज तक वापस नही आए। प्राकृतिक आपदा के दौरान जब गांव वालों ने सरपंच को पूरे मामले से अवगत करवाया तो सरपंच ने यह कह कर टाल दिया कि मेरे हाथ मे कुछ नही है। मेरे कार्यकाल के तो केवल तीन चार महीने बचे हैं। सवाल यह उठता है कि क्या एक जनप्रतिनिधि को आपदा के समय पीड़ित लोगों से इस तरह बात करनी चाहिए। क्या पंचायत प्रशासन की प्राकृतिक आपदा के समय कोई जिम्मेदारी नही बनती?
गांव वालों ने बताया कि जलदाय मंत्री व स्थानीय विधायक कन्हैया लाल चौधरी इतना कुछ होने के बाद भी गांव में हालातों का जायजा या पीड़ित परिवारों को ढांढस बंधाने नही आए।
उल्लेखनीय है कि इस मुसीबत की घड़ी में केवल गांव वाले ही एक दूसरे का सहारा बने है। जिस पीड़ित परिवार के पास राशन नही था तो गांव वालों ने मिलकर पीड़ित परिवार के लिए राशन की व्यवस्था की। पशुओं के लिए चारा भी एक दूसरे से मांगकर काम चलाना पड़ रहा है। तीन दिन बाद भी गांव के हालात सुधर नही पाए हैं। बारिश के कहर के बाद भीपुर गांव में पेयजल व्यवस्था अभी भी ठफ़ पड़ी हुई है। मकान ढहने के दौरान ग्रामीणों के कीमती सामान और सोने चांदी के आभूषण मलबे में दब गए। जेसीबी चलाकर पीड़ित परिवार कीमती सामान को ढूंढने का प्रयास कर रहे हैं। अभी भी हालत यह है कि पीड़ित ग्रामीणों के चेहरे पर उदासी छाई हुई है और आँखों मे से आंसू बह रहे हैं। प्रशासन की ओर से अभी तक कोई आर्थिक मदद या खाद्य सामग्री पीड़ित ग्रामीणों को उपलब्ध नही करवाई गई हैं।
वहीं समाजसेवी व कांग्रेसी कार्यकर्ता सुरेश दास अजमेरा ने भीपुर गांव में जाकर ग्रामीणों से नुकसान को लेकर चर्चा की। साथ ही अजमेरा ने ग्रामीणों को खाद्य सामग्री के पैकिट भी उपलब्ध करवाए।बर्बादी का ऐसा मंजर देखकर हर किसी की आंखे नम हो सकती है। लेकिन जनप्रतिनिधियों का ह्रदय कब पिघलेगा यह कह नही सकते। पूरा का पूरा गांव अभी भी सदमे से उभर नहीं पाया है।