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गणगौरी मैदान कीचड़ में डूबा, तीज मेला फीका पड़ा — परंपरा निभी, पर व्यवस्था रही नदारद
मालपुरा (टोंक)। कभी मालपुरा की सांस्कृतिक पहचान रहे तीज और गणगौर मेले अब बदइंतजामी और उपेक्षा की भेंट चढ़ते जा रहे हैं। रविवार को हरियाली तीज के पावन अवसर पर तीज माता की सवारी तो पूरे श्रद्धा और उत्साह के साथ निकाली गई, लेकिन नगर पालिका की लापरवाही और मैदान की बदहाली ने उत्सव का रंग फीका कर दिया।
पुरानी तहसील स्थित चारभुजा नाथ मंदिर से बैंड-बाजों के साथ रवाना हुई तीज माता की सवारी जैसे-तैसे गणगौरी मैदान पहुंची, जहां श्रद्धालुओं ने नीलकंठ महादेव के दर्शन किए। जिम्नास्टिक एकेडमी के बच्चों ने मंच पर शानदार करतब दिखाए और प्रतियोगिताओं में भाग लिया। सभी प्रतिभागियों को पूर्व पालिका चेयरमैन आशा महावीर नामा की ओर से नगद पुरस्कार दिए गए। उनके नेतृत्व में पौधारोपण भी कर पर्यावरण संदेश दिया गया।

प्रशासनिक उपस्थिति नगण्य, मैदान में गंदगी का बोलबाला
कार्यक्रम में पूर्व चेयरमैन राजकुमार जैन, पार्षद धनराज वाल्मीकि, समाजसेवी महावीर नामा, प्रशासनिक अधिकारी जयनारायण जाट सहित कई गणमान्य लोग मौजूद रहे। लेकिन नगर पालिका की वर्तमान चेयरमैन सोनिया सोनी और कार्यवाहक ईओ अमित चौधरी का कार्यक्रम से नदारद रहना लोगों में चर्चा का विषय बन गया। मैदान में फैली कीचड़, गंदगी और अव्यवस्था ने श्रद्धालुओं की आस्था और नगर पालिका की कार्यप्रणाली दोनों को कटघरे में खड़ा कर दिया।
ना झूले, ना रौनक, ना मेला — रस्म अदायगी बना उत्सव
एक समय था जब तीज और गणगौर मेलों में हज़ारों की भीड़ उमड़ती थी, बच्चे झूलों का आनंद लेते और बाजार में रौनक बिखरी होती। लेकिन अब न झूले हैं, न दुकानों की चहल-पहल और न ही सांस्कृतिक रंग। आयोजनों की चमक मिटती जा रही है और लोग इसे सिर्फ रस्म अदायगी बता रहे हैं।

जनता का फूटा गुस्सा, पालिका को लिया आड़े हाथों
तीज की सवारी देखने पहुंचे शहरवासियों ने खुलेआम गंदगी और अव्यवस्था को लेकर पालिका प्रशासन को कोसा। लोगों ने कहा कि त्योहारों के अवसर पर प्रशासन की यह बेरुखी बेहद शर्मनाक है। त्योहार केवल सवारियों से नहीं, जनसहभागिता और व्यवस्थाओं से जीवंत होते हैं।
शहरवासियों की अपील — सांस्कृतिक विरासत को बचाइए
नगरवासियों ने मांग की है कि तीज और गणगौर जैसे पारंपरिक आयोजनों को फिर से भव्य और व्यवस्थित बनाया जाए। नगर पालिका को जिम्मेदारी लेकर मैदान की नियमित सफाई, रोशनी, झूले-चक्करी और सांस्कृतिक आयोजनों की व्यवस्था करनी चाहिए, ताकि भावी पीढ़ी इन परंपराओं से जुड़ सके।

मालपुरा की तीज सवारी आज भी आस्था का प्रतीक है, लेकिन नगर पालिका की निष्क्रियता और कुव्यवस्था इसके उत्साह को लगातार कमजोर कर रही है। यदि यही हाल रहा, तो आने वाले वर्षों में यह ऐतिहासिक आयोजन केवल तस्वीरों और यादों तक सिमट कर रह जाएगा।
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