मेरा दर्द न जाने कोई,,,,
बेचारा पार्टी कार्यकर्ता,,,
नेता हो या पार्टी कार्यकर्ता राजनीति क्षेत्र में चर्चाओं में बने रहना चाहता है। जहाँ नेताजी की या कार्यकर्ता जी की चर्चा होना बंद हुई, समझ लीजिए गई भैंस पानी में । कई लोग आजकल इसलिए चर्चा में आ रहे हैं क्योंकि वह एक पार्टी को छोड़कर दूसरी पार्टी में जा रहे हैं । इससे उनका महत्व स्थापित होता है।
कई कार्यकर्ता जिन्दाबाद के नारे लगाने से चर्चा में है तो कोई नेताजी की पूंछ के बंधकर चर्चा में है। कोई एक पार्टी छोड़कर नई पार्टी के बड़े-बड़े नेताओं के साथ उनका फोटो सोशल मीडिया पर डालकर खुश हो जाता है। जो कार्यकर्ता कल तक अपने आपको आमजनता का नेता समझते थे,,आज एक सांसद साहब के द्वारा झंडी दिखाने पर झंडू बाम हो गए?
आप ही सोचिए जब दस-दस साल तक कार्यकर्ता समोसे में आलू की तरह एक ही पार्टी में पड़ा रहेगा तो कौन पूछेगा?
रात दिन चुनावी दौर में बीवी बच्चो को छोड़कर जिंदाबाद के नारे लगाने वाले पार्टी कार्यकर्ता जिसे परिवार के लिए फुर्सत नही,,चुनाव जीतने के बाद उस कार्यकर्ता को न तो घर मे जगह मिलती है और न पार्टी के मंच में।
जिस पार्टी कार्यकर्ता के बारे में सब यह जानते है कि वह केवल पार्टी को ही वोट देगा। पार्टी का दामन वो कभी नही छोड़ सकता तो उस पार्टी कार्यकर्ता और उस वोटर की आवभगत नेताजी बहुत कम करते हैं। इसलिए बिना पेंदे के ढुलमुल-वोटर बनो ताकि चार लोग तुम्हारा वोट पक्का करने के लिए तुम्हारे आगे-पीछे घूमते रहे। लेकिन पार्टी कार्यकर्ता की आखों पर तो विधायक साहब और सांसद साहब का रंगीन चश्मा जो चढ़ा है,,, पार्टी के प्रति निस्वार्थ वफादारी रग रग में दौड़ रही हैं,,,वो कैसे हटाये? बेचारा मजबूर जो ठहरा।
कोई बात नही क्योंकि पार्टी के कार्यकर्ता को तो केवल विधायक या सांसद साहब या किसी बड़े नेता के साथ फोटो खींच कर फेविकोल के मजबूत जोड़ के साथ सोशल मीडिया पर जो चिपकानी है। आमजनता या वार्ड या मोहल्ले वालों को अपना झूठा रुतबा जो दिखाना है।
कल शहर में एक पार्टी की यात्रा का समापन समारोह हुआ। कार्यकर्ताओ को विधायक साहब और मण्डल अध्यक्ष साहब ने पांडाल को लोंगो से भरने की जिम्मेदारी दी तो पार्टी का सिपहसालार कार्यकर्ता अपने आपको गौरवान्वित महसूस करता हुआ भागा दौड़ा,,लोंगो को लाना बिठाना पता नही क्या क्या पापड़ बेला। मगर जब मंच पर तो क्या मंच के नीचे खड़े होने पर भी मंच संचालक महोदय ने पार्टी के सिपहसालार कहे जाने वाले कार्यकर्ता को मंच से दूर हटने की आवाज लगाई तो बेचारे को अपनी पार्टी के प्रति वफादारी निभाते हुए तुरन्त प्रभाव से वहां से हट गया।
पार्टी का सिपहसालार कहा जाने वाला यह कार्यकर्ता अपने मन की कुंठा को किसी से कह भी नही सकता क्योंकि यह पार्टी की रीति नीतियों के खिलाफ है। बस एक दूसरे कार्यकर्ता का मुंह देखा करता है या फिर दूसरे कार्यकर्ता के साथ बने मजाक पर हंसता रहता है। यह हंसना ही इसके मन को दिलासा देता है।
यह हैं पार्टी का सिपहसालार कार्यकर्ता,,अपनी मान मर्यादा का कोई ख्याल नहीं,, लेकिन हमारे यह सिपहसालार को अगर घर पर कोई ऐसा कह दे तो यह बवाल क्या तांडव करने लग जाते है। खैर कोई बात नहीं पार्टी के सिपहसालार जो ठहरे। ऐसी छोटी मोटी चीजों पर ध्यान नही देते।
चुनाव के दिन सुबह-सुबह जाकर वोट डालकर यह महान कार्यकर्ता अपना महान फर्ज पूरा करता है।
लेकिन मेरे सिपहसालार सुबह सुबह वोट डालकर तुमने कौन-सा महान कार्य कर दिया ? तुम्हारी उंगली पर लगा हुआ नीला निशान इस बात का सूचक है कि अब तुम केवल छूटे हुए पटाखे हो।
एक बार अपने माथे पर लगा लेबल हटाकर तो देखो विधायक सांसद तो क्या मुख्यमंत्री तक आपको राजी करने में लग जाएंगे। इसलिए पार्टी बदलो। दो-चार दिन के लिए ही सही नई पार्टी का झंडा अपने हाथ मे उठाओ। और फिर कह दो कि इससे मेरा मोहभंग हो गया और वापस आ जाओ लेकिन चर्चा में तो रहो। कुछ भी नहीं कर सकते तो एक अफवाह फैलाओ कि फलां व्यक्ति पार्टी छोड़कर जा रहा है। या पार्टी पद से इस्तीफा दे रहा है। फिर देखो अगर उम्मीदवार अपने चार चमचे तुम्हारे घर पर न भेज दे तो कहना।
इस जमाने का यही चलन है जो असंतुष्ट है उसे ही प्रमुखता मिलती है। जो संतुष्ट है ,उसकी तरफ कौन ध्यान देता है ? जिसका वोट पक्का है ,उसे काहे का महत्व ? दो-चार असंतोष के स्वर बुलंद करो और फिर देखो राजनीति में तुम्हारा महत्व भी कायम हो जाएगा।
आज विधायक या सांसद के करीबी लोग कौन हैं जो कल तक नुक्कड़ पर बैठकर इनकी बुराई किया करते थे।
चारों तरफ नजर दौड़ाओ, तुम्हें ऐसे लोग मिलेंगे जो कम से कम तीन बार पार्टियां बदल चुके हैं। उनकी आत्मा वही है, केवल चोला बदला है। यह वही महापुरुष हैं जिन्होंने इस राजनीति के मूल को सही प्रकार समझा है। इन्हें मालूम है कि पार्टी की सदस्यता बाहर से पहने जाने वाले वस्त्र होते हैं । भीतर से तो कुर्सी की आराधना ही एकमात्र लक्ष्य होता है।
तो आज जागो ग्राहक जागो की जगह कहना पड़ रहा है कि जागो सिपहसालार जागो,,अपनी ताकत को पहचानो,, अपने आपको पहचानो। कब तक चन्द नेताओ की गुलामी करते रहोगे? आपकी वजह से पार्टी का वजूद है,, आपकी वजह से नेताजी, सांसद और विधायक का वजूद है।
कार्यकर्ता किसी भी पार्टी का हो वो केवल हमेशा अपने आपको ठगा सा महसूस करता है।
अभी इसी शहर के कुछ जनप्रतिनिधि भारत जोड़ने के लिए गए थे लेकिन वो बाबा के पास भी नहीं पहुंच सके। केवल भीड़ की फोटो खींचकर और उसे सोशल मीडिया पर अपलोड कर अपनी झूठी वाहवाही बटोर रहे थे – आज भारत जोड़ो यात्रा में। बाबा के लंच के समय बाहर बैठकर फोटो भेजकर मीडिया से कहते हैं खबर लगाओ,,रा….ल..बाबा के लंच करते समय बाहर बैठे हैं।
हे भले मानुष पार्टी कार्यकर्ता मेरे देश के निर्माण में बहुत बड़ा तेरा योगदान है। अपने आपको पहचान तो सही तुझमें कितनी ताकत है,,,
खैर कोई बात नहीं कभी तो पार्टी का सिपहसालार कहे जाने वाला कार्यकर्ता अपने आपको जरूर पहचान पाएगा।
व्यंग्यकार – लेखक
पार्टी वर्कर हितेषी