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व्यंग्य लेख

“शायद अबकी बार रावण भी नाराज़ था!”…..

“शायद अबकी बार रावण भी नाराज़ था!”….. विजयदशमी आई, और रावण ने अपनी नकली आंखें खोलीं, जोर से कहा – “अरे भाई ! आखिरकार श्रीराम को आना ही पड़ा!” हाँ, वही राम जिन्हें पिछले कई सालों तक नगर प्रशासन के अधिकारी यानी ‘अल्टरनेट राम’ बना-बनाकर रावण का वध कर देते …

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“मेरे शहर का हाल-ए-गज़ब”

“मेरे शहर का हाल-ए-गज़ब” हमारे शहर में सब कुछ है- बिजली है, मगर कभी आती है, कभी जाती है… ठीक वैसे ही जैसे नेताओं के वादे । सड़कें भी हैं, लेकिन गूगल मैप भी उन्हें ढूँढने में फेल हो जाता है। गड्ढों ने बाकायदा यूनियन बना रखी है- “गड्ढा विकास …

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