धार्मिक आयोजनों में फूहड़ गाने और अश्लील नृत्य का बढ़ता जा रहा है चलन…?
भारत देश विश्व में अपनी सांस्कृतिक विरासत के लिए जाना जाता है। अतिथि देवो भवः और वसुधैव कुटुम्बकम की भावना का अनुसरण करने वाले देश में आज भारतीय संस्कृति धीरे धीरे विलुप्त होती हुई नजर आ रही है। बॉलीवुड के फूहड़ और द्विअर्थी वाले फिल्मी गानों ने आज युवा पीढ़ी को ऐसे जकड़ लिया जैसे हरियल पक्षी अपने पंजों में लकड़ी को जकड़े रखता है। आपको बता दूं कि हरियल एक ऐसा पक्षी है जो लकड़ी को पकड़ने के बाद अपने पंजो से कभी नहीं छोड़ता है। इस पक्षी के बारे में मान्यता है कि यह धरती पर कभी पैर नहीं रखता है। यदि यह धरती पर उतरता भी है तो अपने पैरों पर लकड़ी का टुकड़ा लेकर उतरता है एवं उसी पर बैठता है। आज हमारी युवा पीढ़ी ने भी अपनी सांस्कृतिक धरोहर को छोड़कर पाश्चात्य संस्कृति रूपी लकड़ी को हरियल पक्षी बनकर जकड़ लिया है। पाश्चात्य संस्कृति को अपनाने की होड़ सी मची हुई है और इस होड़ में घी डालने का कार्य कर रहे हैं सांस्कृतिक व धार्मिक कार्यक्रम की आड़ में आयोजित होने वाले फूहड़ कार्यक्रम… हालांकि हर आयोजन में फूहड़ गाने और अश्लील नृत्य नही परोसा जाता। लेकिन कुछ आयोजन धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यक्रम के नाम पर ऐसे भी होते है, जिनमें भारतीय संस्कृति की खुल्ले आम धज्जियां उड़ाई जाती है। अगर मालपुरा शहर की बात करें तो लोगों से ऐसा सुनने को मिल रहा है कि शहर में नवरात्रि के उपलक्ष में एक धार्मिक कार्यक्रम आयोजित होने वाला है। उस कार्यक्रम को लेकर अभी से ही हिन्दू समाज में आक्रोश व्याप्त हो गया है। आयोजकों को हिदायत भी दी गई है कि अगर धार्मिक आयोजन किया जा रहा है, तो उस कार्यक्रम में फूहड़ और द्विअर्थी वाले अश्लील गाने नही चलने चाहिए, केवल धार्मिक गीतों और भजनों को ही प्रमुखता दी जाए। साथ ही यह भी हिदायत दी गई है कि कार्यक्रम में भारतीय संस्कृति के अनुसार ही महिला पुरुष वस्त्र धारण करें… अब एक तरफ हिन्दू समाज के सामाजिक संघठन है जो अपनी भारतीय संस्कृति की पैरवी कर रहे हैं और दूसरी तरफ आयोजक है जो कार्यक्रम को आयोजित करने की तैयारी में लगे हुए हैं। वहीं सुनने को यह भी मिल रहा है कि आगामी शारदीय नवरात्रों में आयोजित होने वाले धार्मिक कार्यक्रमों डांडिया, गरबा व भजन संध्या में भारतीय संस्कृति के अनुरूप ही कार्यक्रम संचालित करने का विश्व हिंदू परिषद ने अनुरोध किया है… सभी धार्मिक कार्यक्रमों के आयोजकों से निवेदन भी किया गया है कि सनातन परंपरा के अनुसार ही कार्यक्रम आयोजित किए जाए, यदि किसी भी कार्यक्रम में फूहड़ गाने व अश्लील नृत्य को प्रमुखता दी गई तो उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी एवं उनका विरोध भी किया जाएगा… मैं भी एक भारतीय होने के नाते अपनी संस्कृति और विरासत पर गर्व करता हूँ लेकिन आजकल भारतीय संस्कृति को नजरअंदाज कर पाश्चात्य संस्कृति को अंधाधुंध लोगों को अनुसरण करते हुए देखता हूँ तो हृदय में वेदना का सागर हिलोरें लेने लगता है… अगर समझदार लोग ही ऐसा करेंगे तो आने वाली पीढ़ी के मानसिक स्वास्थ्य पर कैसा प्रभाव पड़ेगा…? लेखक हूँ तो लेखनी से ही अपनी पीड़ा व्यक्त कर सकता हूँ… बाकी आयोजक जाने और विरोध करने वाले…. (सम्पादकीय लेख)