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टोडारायसिंह रिपोर्टर उमाशंकर शर्मा
नेमिनाथ भगवान का जन्म और तप कल्याणक धूमधाम से मनाया
टोडारायसिंह (केकड़ी) :- शहर में चतुर्मास कर रहे आचार्य सुनिल सागर जी महाराज के शिष्य मुनि श्री शुभम सागर जी महाराज और मुनि श्री सक्षम सागर जी महाराज के सानिध्य में जैन धर्म के 22 वें तीर्थंकर भगवान नेमिनाथ का जन्म और तप कल्याणक नेमिनाथ मन्दिर में बड़ी धूमधाम से मनाया गया। जैन समाज और चतुर्मास कमेटी अध्यक्ष संत कुमार जैन और प्रवक्ता मुकुल जैन ने बताया कि प्रातः नेमिनाथ मन्दिर में भव्य पंचामृत अभिषेक और शांतिधारा की गई। उसके बाद भगवान नेमिनाथ विधान का आयोजन किया गया। जिसमें 108 जोड़ों द्वारा अर्घ चढ़ायें गए। उसके बाद श्री जी को पालना में झुलाया गया।
तीर्थंकर के जन्मकल्याणक महोत्सव पर नेमिनाथ मन्दिर में मुनि शुभम सागर जी महाराज ने कहा कि जब-जब सृष्टि में पुण्य आत्माओं का पदार्पण होता है, सृष्टि भी हर्ष-विभोर होकर उनके आगमन में झूम उठती है। श्रद्धालुओं को तप और वैराग्य का अर्थ समझाया। उन्होंने कहा कि सभी को बिना तप के लौकिक क्षेत्र में भी सफलता नहीं मिलती। संयम, तप, त्याग की पल-पल आवश्यकता है। तभी आपका जीवन संतुलित रहता है। मुनि श्री ने कहा कि मानव, मानव तभी कहलाता है जब उसके दयाभाव हो। मानवता की नींव दया है। दया धारण करने से व्यक्ति कषाय मुक्त होता है।क्योंकि दया धर्म का मूल है। और पाप का मूल अभिमान है और दयाभाव का संचार जीवन पर्यंत रहना चाहिए। मुनि ने कहा कि करूणा, दया से जीवन मधुर बनता है। जो धर्म को जानता है पर उस पर अमल नहीं करता है। वह निश्चित संसार सागर में डूबा रहता है। ज्ञान का अभाव व्यक्ति के स्वभाव पर प्रभाव डालते है जो अज्ञानी होते है। उन्हें संघ-समाज, परिवार से कोई मतलब नहीं रहता है। ज्ञान अभाव, समर्पण का अभाव से पद की लालसा बढ़ती है और अपमान संस्कार का नाश करता है। वर्तमान परिस्थिति अगर सही ना हो तो भविष्य अंधकारमय होता है। भगवान नेमीनाथ के जीवन चरित्र पर आधारित नाटिका का मंचन किया गया। जिसमें नेमीनाथ के च्यवन कल्याणक, जन्म कल्याणक, दीक्षा कल्याणक, केवलज्ञान कल्याणक मोक्ष कल्याण के ओर परमात्मा की माता द्वारा सोलह स्वप्न दर्शन, प्रियवंदा दासी द्वारा बधाई, भुआ द्वारा नामकरण आदि दृश्यों का मंचन किया गया। इस अवसर पर सकल जैन समाज के महिला पुरुष उपस्थित थे।
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