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मोदीजी के राज में… अमीर हो गए कंगले, बना लिए बंगले…

मोदीजी के राज में… अमीर हो गए कंगले, बना लिए बंगले…

मोदीजी के राज में… अमीर हो गए कंगले… बना लिए बंगले… देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने गरीब और बेघर लोगों को छत मुहैया कराने का स्वप्न देखा था… प्रधानमंत्री जी ने एक योजना भी चलाई जिसका नाम रखा पीएम आवास योजना… चाहे वो गांव का पैदाइशी गरीब हो या शहर की चकाचौंध दूधिया रोशनी में, फुटपाथ पर खुले आसमान के नीचे सोने वाला शहरी बेघर मंगतू… मोदी जी कहते थे ना खाऊंगा ना खाने दूंगा… भ्रष्टाचारियों का जड़ से सफाया कर दूंगा… डबल इंजन की सरकार बनाओ… 2023 24 तक गरीब तबके के बेघर लोगों को सिर छुपाने के लिए छत मिलेगी… लेकिन डबल इंजन की सरकार में, हे प्रभु… हे हरि राम, कृष्ण जगन्नाथम, प्रेमानंद… ये क्या हुआ… पासा ही उलटा पड़ गया… मोदीजी के राज में अमीर तो हो गए कंगले और बना लिए बंगले…? मोदी जी के राज में आवास योजना की फाइलों पर लक्ष्मी रूपी वजन रखने से ताजा ताजा गरीब और बेघर बने हुए लोगों ने पैदाइशी गरीब और बेघर परिवारों की छतों को भी खा गए और डकार तक नहीं ली… फाइलों में नए नए बेघर गरीब बनने वालों की तो बात ही कुछ निराली है… इनको गरीब और बेघर का दर्जा दिलवाने के लिए पालिका के अधिकारी कर्मचारियों को कितने पापड़ बेलने पड़े होंगे…? जरा सोचिए तो जनाब…. मंगतू तो पैदाइशी गरीब ठहरा, अब पैदाइशी गरीब को गरीब बनाने में वो मजा कहाँ… जो दुमहला वाले अमीरों को गरीब बनाने में है…अरे भाई मंगतू तो पैदाइशी गरीब होने के साथ ही महामूर्ख भी है, वो इतना भी नही समझता कि रिश्वत रूपी चंदे के बिना कोई गरीब कैसे गरीब बन सकता है?… यहाँ तो जिंदा व्यक्ति को भी अपने जीवित होने का सबूत देना पड़ता है… बेचारा मंगतू बेअक्ल… मोदीजी के वादों पर भरोसा कर, घर के चक्कर में ऐसा फंसा कि दो जोड़ी चप्पलें दफ्तरों के चक्कर काट काटकर पहले ही घिस चुका… आज फिर पड़ोसी से उधार लिए हुए पैसों से एक नई जोड़ी चप्पल लाया है बाजार से… मंगतू की बूढ़ी हो चुकी हड्डियों में अब वो दम नहीं रहा कि दो पैसे कमाने के लिए ठेला चला सके… उधारी पर ही जीवन नैय्या हिचकोले लेते हुए चल रही है… मंगतू की पत्नी जो जीवन के अंतिम पड़ाव पर है, वो भी पक्के घर की आस में कई सालों से नंगे पैर घूम रही है… मंगतू की बेअक्ल की खोपड़ी कम से कम पहले सिर के बालों से तो ढकी हुई थी, परिवार का बोझ उठाते उठाते अब तो वो भी सफाचट हो गई… किसी ने सच ही कहा है कि अफसर मेहरबान तो गधा पहलवान… अफसरों और नेताओं की चापलूसी करने में जो मजा है वो ओर कहाँ…? बेचारा मंगतू आज भी अपनी घास फूस वाली छत के छेद में से खुले आसमान की ओर टकटकी लगाए देख रहा है… और मन ही मन सोच रहा है मेरा घर कब बनेगा…? आसमान से नजर हटी तो नई चप्पल की जोड़ियों पर अटक गई… सुबह फिर दफ्तर के चक्कर जो काटने है… (सम्पादकीय लेख)

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