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विनाश काले, विपरीत बुद्धि – देवीशंकर सोनी की कलम से…

विनाश काले, विपरीत बुद्धि”
“कांग्रेस ने रामलला प्राण-प्रतिष्ठा महोत्सव का आमंत्रण ठुकराया”…?
सोनिया गांधी व कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने अयोध्या महोत्सव में शामिल होने से किया इनकार…?
खैर यह तो होना ही था, राम को काल्पनिक बताने वाले रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा में किस मुंह से जाएंगे…?
यह जाना चाहते तो भी नहीं जा सकते थे, क्योंकि…?
“होय वही जो राम रुचि राखा”…

देवीशंकर सोनी की कलम से…..✍️

-करीब 495 वर्ष बाद रामलला अपने महल में विराजेंगे… चार सदी से भी अधिक समय तक कैद में रहने के बाद, कई वर्षों तक तिरपाल में निवास करने के पश्चात रामलला को अपना स्वयं का निवास मिलने वाला है… सारे देशवासी इस पल को देखने, सुनने व अपने जीवन में उतारने को आतुर है… कुछ दानवी प्रवृत्ति के पिशाचरों को छोड़कर (जो श्री राम के अस्तित्व को नकार दें वह मानव नहीं हो सकते) हिन्दुस्तान की सारी प्रजा इस महोत्सव में शामिल होना चाहती हैं… बालक, किशोर, युवा, अधेड़, बुजुर्ग हर आयु वर्ग का व्यक्ति इस महायज्ञ में अपने हिस्से की आहुति देने को तैयार है… नगर, कस्बा, गांव व ढाणीयों में अयोध्या से आये पुजित अक्षत एवं निमंत्रण पत्रकों को सिर पर धारण कर यात्राएं निकाली जा रही हैं…!
-हर कोई अयोध्या जाने को तैयार बैठा है, यहां तक की विदेशों में बसे भारतीयों में भी प्राण-प्रतिष्ठा महोत्सव को लेकर भावनाएं उफान पर है… स्थिति यह है कि स्वयं प्रधानमंत्री देशवासियों से अपील कर रहे हैं कि अभी 20 से 22 जनवरी तक आप अयोध्या नहीं आए, घर पर रहकर ही दीपावली जैसा उत्सव मनाए… 100 करोड़ से अधिक भारतीय की इस अनोखे पल की प्रतीक्षा कर रहे हैं…!
-मगर इन सबके विपरीत कांग्रेस ने इस आनंदमय दृश्य के अलौकिक दर्शन करने के बजाय घर बैठे आए श्रीराम के आशीर्वाद का अपमान करते हुए आमंत्रण पत्र ठुकराकर तुष्टिकरण की सारी सीमाएं पार कर दी है… इस आत्मघाती निर्णय के साथ कांग्रेस क्या मुस्लिम वोट बैंक को खुश देखना चाहती है… क्या देश में बहुसंख्यक वर्ग की भावनाओं का अपमान कर धर्मनिरपेक्षता का झंडाबरदार बने रहना चाहती है… क्या कांग्रेस का मानना है कि यह सब भाजपा का प्रोजेक्ट है, अगर ऐसा ही है तो फिर यह कांग्रेस की संकीर्ण मानसिकता और उसके नेताओं के दिमाग के दिवालियापन की निशानी है जो अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारने की रणनीति पर चल रही है…
– युग पुरुष राम अकेले भाजपा के नहीं है, ना ही भाजपा ने राम का पेटेंट करवाया है… भाजपा का योगदान यह है कि राम मंदिर से लेकर हिंदू संस्कृति से जुड़े पुनरुत्थान के कार्यों की वह समर्थक है… कांग्रेस को यह क्यों नहीं समझ में आता कि उसे निमंत्रण पत्र भाजपा ने नहीं अयोध्या से राम मंदिर निर्माण सेवा समिति ने भेजा है…
– सोनिया गांधी इसे भाजपा का इवेंट बताती है पर यह क्यों भूल जाती है कि समय रहते अगर कांग्रेस ने बहुसंख्यक वर्ग की भावना का ख्याल रखा होता तो आज वह भी इस इवेंट का हिस्सा होती… कांग्रेस इसे लोकसभा चुनाव में भाजपा द्वारा लाभ लेने का प्रोपेगेंडा बताती है, मगर राम मंदिर निर्माण में सहयोग के लिए कांग्रेस को किसने मना किया था… सोनिया गांधी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तरह क्यों नहीं देशवासियों से अपील करती है की इस महा-उत्सव को देश में लोग बड़े धूमधाम से मनाएं… जब सुप्रीम कोर्ट ने राम मंदिर मामले में फैसला सुनाया था तो कांग्रेस ने इसका स्वागत किया था, तो फिर यह बीजेपी का इवेंट कैसे हुआ…
– एक तरफ आप न्यायिक प्रक्रिया का स्वागत करते हैं, दूसरी तरफ उसके निर्णय को नकारते हुए समारोह का न्यौता भी ठुकराते हैं… यह दोहरी मानसिकता ही कांग्रेस को गर्त में पहुंचाएगी… सुप्रीम कोर्ट द्वारा न्यायिक प्रक्रिया के तहत गठित ट्रस्ट की देखरेख में समारोह की सारी व्यवस्थाएं की जा रही है तो कांग्रेस इसे राजनैतिक चश्मे से क्यों देखती है… एक तरफ कांग्रेस के युवराज देश में न्याय यात्रा निकाल रहे हैं तो दूसरी तरफ इसी पार्टी की राजमाता मंदिर समारोह का न्यौता ठुकराकर भगवान पुरुषोत्तम श्रीराम के मूल्यों का अपमान कर प्राण-प्रतिष्ठा समारोह के आमंत्रण को ठुकरा रही है…
– अगर कांग्रेस के नेता आमंत्रण ठुकराकर भाजपा द्वारा इस महोत्सव के श्रेय लेने के नेरेटिव को कमजोर करना चाह रहे है तो यह उसकी बहुत बड़ी भूल है… कांग्रेस यह अच्छी तरह से जान ले की, नरेंद्र दामोदरदास मोदी केवल 22 जनवरी के समारोह तक सीमित नहीं है… वह अगले तीन महीने तक इस उत्सव को भुनाएंगे और कांग्रेस को आगामी आम चुनाव में पटखनी देने के लिए यह काफी है… अयोध्या समारोह के निमंत्रण पत्र को ठुकराने के बाद कांग्रेस के पास कोई विकल्प नहीं है अब उसके एक तरफ कुआं है तो दूसरी तरफ खाई है…
– इस मौके पर रतलाम मध्यप्रदेश के साहित्यकार प्रोफेसर अजहर हाशमी की कुछ पंक्तियां याद आ रही है…!

अन्ततः

कितने असली चेहरे कितने नकली चेहरे धर रहे,
छल से या पाखंड से तिजोरी भर रहे…
दिन में उजले बनते फिरते हैं ये सफेदपोश…
रातों की सियाही में मीरा-मरियम के सौदा कर रहे…
बहुत हुआ है पतित हमें उत्थान चाहिए…
सत्यम-शिवम-सुंदरम का मान चाहिए…
मुझको तो बस राम वाला हिंदुस्तान चाहिए…

( यह लेखक के निजी विचार है, किसी का सहमत या असहमत होना जरूरी नहीं है )

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