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आज की मुख्य खबर…नेताजी को आई छींक..सियासत गरमाई…

आज की मुख्य खबर…नेताजी को आई छींक..सियासत गरमाई…

आज के जमाने के कलम के सिपाहियों का भी क्या कहना ? डिजिटल इंडिया के साथ कलमकार भी डिजिटल हो चले और तो और पब्लिक भी डिजिटल हो गई है। पल पल की खबर अब आपके दूरभाष यंत्र पर पहुंचाने में नवीन युग के कलमकार के आगे तो यमराज के दूत भी पनाह मांग रहे हैं। हर छोटी से छोटी खबर हो या बड़ी से बड़ी खबर नेताजी को पूरा कवरेज देने में पीछे नही हटते हमारे इस युग के त्रिनेत्रधारी।

त्रिनेत्रधारी से मेरा मतलब भोले शंकर से नहीं है। भगवान शिव तो भोले हैं, उनका तो कहना ही क्या। हमारे कलमकार तो महान वैज्ञानिक आइंस्टीन से अपने आपको कम नहीं आंकते। आजकल कलम के सिफहसालार कहे जाने कलमकारों को भी त्रिनेत्र का दर्जा दिया गया है। कारण है कलमकार अपनी दोनों आंखे तो चौकन्नी रखते ही रखते हैं, साथ ही अपनी तीसरी आंख अर्थात नवीन युग की देन दूरभाष यंत्र इसे भी यह हर समय खोले रखते हैं। पता नही कब प्रवासी नेताजी को क्या हो जाए ?

नेताजी का ध्यान इतना तो इनकी धर्मपत्नी भी नही रखती होगी जितना ध्यान हमारे कलमकार रखते हैं। आम जनता का ध्यान क्यों रखे आम तो आम हैं, आम को जैसे चूसकर फेंक देते हैं वैसे ही जनता को चूसना नेताओं का काम है। आम मौसम में ही अच्छे लगते हैं, वैसे ही आमजनता भी केवल चुनावी मौसम में ही अच्छी लगती है। क्योंकि जिस तरह आम में रस मौसम के अनुसार ही बनता है। वैसे ही आमजनता में भी रस चुनावी मौसम में ही बनना शुरू होता है।

अब मौसम चुनावी है तो प्रवासी नेताजी ने भी ऊंट की तरह करवट बदल ली है क्योंकि नेताजी को अब बेचारी जनता की याद जो आने लगी है। प्रवासी नेताजी अब जनता के बीच में जाने को तैयार है तो हमारे कलमकार कहाँ पीछे रहने वाले हैं। कलमकारों ने भी नेताजी के साथ चुनावी युद्ध मे जाने के लिए अपनी कमर कस ली है। प्रवासी नेताजी ने नई ड्रेस अर्थात नेताजी वाली फिलिंग दिलाने वाली ड्रेस को अपनी आलमारी से निकलवा ली है। नेताओं की फिलिंग करवाने वाली ड्रेस पर अच्छी तरह से इस्त्री कर दी गई है।

आज प्रवासी नेताजी एक शोक सभा में जाने वाले हैं। शोक सभा में जाने का तो इनका रोज का काम है। आखिर प्रवासी नेताजी शोक सभा मे क्यों नहीं जाए… शोक सभा से दोहरा फायदा जो ठहरा..एक तो जनता से रूबरू होने का ओर दूसरा मीडिया में सुर्खियां बटोरने का। आम के आम और गुठलियों के दाम प्रवासी नेताजी भली भांति जानते हैं। नेताजी घर से बाहर निकले ही थे कि नेताजी को अचानक छींक आ गई।

बरसात का मौसम है जुकाम वुकाम लग ही जाती है। प्रवासी नेताजी को जब छींक आई तो हमारे एक कलमकार वहीं नेताजी के पीछे खड़े थे। तुरन्त खबर चलाई…आज की मुख्य खबर..नेताजी को आई छींक… छींक की खबर जब लोगो के दूरभाष यंत्र पर पहुंची तो शहर में हलचल पैदा करने वाले कलमकार ने हलचल मचा दी। दूसरे कलमकार जो सच्चाई का सागर कहलाते हैं वो क्यों पीछे रहते। सच्चाई के सागर ने भी छींक को लेकर जो अपनी कलम की स्याही ऐसे बहाई की सागर भी तौबा करने लग गया।

फिर तो क्या… कौनसा कलमकार पीछे रहने वाला था, छींक को लेकर खबर छापने में सबसे पहले अपने आपको बेस्ट और बाकी को कॉपी पेस्ट बताने का जो समय था। नेताजी की छींक तो अब कलमकारों के फ्रंट पर आ गई। जिस तरह हंटर अर्थात शिकारी अपने हंट पर अर्थात शिकार पर नजर जमाए बैठा रहता है। कलमकारों ने तो नजरें जमाने के मामले में शिकारी को भी पीछे छोड़ दिया। प्रवासी नेताजी की छींक को लेकर मीडिया में वो बवाल मचा की सियासत गरमा गई। नेताजी ने सभी कलमकारों को बुलाकर सम्मान किया और पुरस्कार भी दिया। प्रवासी नेताजी ने कहा कि ऐसे ही आप सच्चाई दिखाते रहो, एक दिन देश के बड़े बड़े, नामचीन कलमकारों में आप सबका नाम स्वर्णिम अक्षरों में लिखा जाएगा। नेताजी की प्रेरणा से विरोधी दल के महामंत्री भी प्रभावित हुए बिना नहीं रह सके। विरोधी दल के महामंत्री जी ने तुरंत अपने पद से इस्तीफा देकर कलमकार बनने का निश्चय कर लिया। महामंत्री जी कलमकार तो बन गए लेकिन अपने महामंत्री की पदवी से दूर हो ना सके। अगर महामंत्री जी निष्पक्ष कलमकार बनते है तो अपने राजाजी के खिलाफ भी लिखना पड़ता है। इसलिए महामंत्री जी ने भी पूरा निश्चय कर लिया कि जनता कुछ भी कहे राजाजी के गुणगान करना तो नही छोड़ेंगे…
आखिर छींक तो छींक ठहरी क्या रंक क्या राजा आ ही जाती है.….    (सम्पादकीय लेख)…कृपया ध्यान रहे यह लेखक के अपने निजी विचार है।

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