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“पटरी रहित समझौता एक्सप्रेस भाग – 2… अदालत का लाल सिग्नल

“पटरी रहित समझौता एक्सप्रेस भाग – 2…अदालत का लाल सिग्नल

मालजी की नगरी में फिल्मों की तरह हर कहानी का सीक्वल बनता है। बाहुबली और पुष्पा को भूल जाइए, यहां की पटरी रहित समझौता एक्सप्रेस का भी भाग 2 आ ही गया।

अरे भाई, ये कोई आम गाड़ी थोड़े ही है, ये तो पटरी रहित समझौता एक्सप्रेस है। बाहुबली – 2 और पुष्पा 2 की तरह इसका भी भाग-2 रिलीज होना ही था, क्योंकि पहले भाग में जो सस्पेंस और क्लाइमेक्स अधूरा छूट गया था… और अधूरी कहानियां यहां उतनी ही खतरनाक होती हैं, जितना बिना पटरी का इंजन ।

अदालत का लाल सिग्नल समझौता एक्सप्रेस पर ऐसा गिरा कि पीपली चौराहा, उर्फ पत्रकार पाठशाला के हेड पत्रकार जी की धड़कनें, इंजन की रफ्तार पकड़ 420 की स्पीड पर दौड़ने लगीं। 30 लाख का पीपली स्टेशन अब आधा-अधूरा पड़ा है। अदालती लाल सिगनल ने सपनों के प्लेटफार्म पर खड़े इस स्टेशन की क्लाइमेक्स स्टोरी में “हैप्पी एंडिंग” की जगह “कट टू ब्लैक स्क्रीन” ला दी।

पालिका के दबंग अधिकारी जी का जीएसबी महोत्सव मनाना उल्टा पड़ गया। कानूनी पटरी पर फिसलते इंजन ने सिर्फ अधिकारी जी का डिब्बा नहीं उतारा, बल्कि पांच और डिब्बों को खींचते हुए बाहर कर दिया। बिचौलियों ने इस डिब्बे को वापस पटरी पर चढ़ाने की खूब कोशिश की-कभी मीटिंग, कभी फाइल, कभी चाय कॉफी तो कभी फोन…

पर कानून की पटरी लोहे की होती है, बिचौलियों की नहीं। कानून की आंखों पर पट्टी बंधी हो सकती है, लेकिन कानून में “धृतराष्ट्र” वाली अंधी ममता तो नहीं होती।

उधर वन विभाग स्टेशन बनाने पर नहीं, बल्कि पीपली को बचाने पर टकटकी लगाए है – जैसे कोई मां, बच्चे को रेलवे क्रॉसिंग पर खड़ा देख ले। इस बार वन विभाग इतना सतर्क है कि अगर किसी ने हरे पत्ते को भी आंखें तरेर कर देखा, तो नोटिस में नाम पक्का ।

पत्रकार जी की हालत देखिए- समझौता एक्सप्रेस से समझौता कर बैठे और अब “ना घर के, ना घाट के” की श्रेणी में आ गए। पालिका के बुलडोजर ने भी यही हाल भुगता – शुरुआत में गरज, बाद में बरसने का टाइम ही न मिला।

मीडिया में सुर्खियां चमकीं-

“समझौता एक्सप्रेस का इंजन फेल तकनीकी खराबी या किस्मत का खेल ?”

खाकी वर्दी वालों ने भी “अपराधियों में भय, आमजन में विश्वास” वाली पंक्ति को एकदम प्रैक्टिकल वर्क में बदलकर दिखा दिया।

समझौता एक्सप्रेस का इंजन फेल क्या हुआ कि अधिकारी जी जांच के घेरे में आ गए और आजादी के पहले ही बेड़ियों ने दस्तक दे दी।

लेकिन असली कहानी यहीं द्विस्ट लेती है- अधिकारी जी के आसपास मंडराने वाले चाटूकारों पर कोई आंच नहीं आई। लगता है आजाद देश में चाटूकारिता को अब संस्कृति का दर्जा मिल गया है। है। ये देखकर नारदमुनि की बाकी संतानें सोच में पड़ गईं – “क्या हम नारदमुनि के वंशज नहीं ?”

उनके दुख ने खुद नारदमुनि के हृदय को पिघला दिया, और उन्होंने भविष्यवाणी की-

“हे पुत्रों! कलम की धार लगाओगे तो जख्म दोगे, और जख्म देने वाले को यहां सम्मान नहीं मिलता। चाटूकार बनोगे तो तुम्हारी गाड़ी बिना पटरी भी प्लेटफार्म पर खड़ी रहेगी।”

और इस तरह पटरी रहित समझौता एक्सप्रेस भाग 2 का अंत हुआ, लेकिन भाग 3 का टीज़र पहले ही लॉन्च हो चुका है… क्योंकि असली मज़ा तो आगे आने वाला है। (व्यंग्य लेख : लेखक की कलम से…)

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