Chief Editor
“अधिकारी जी और एपीओ की दिवाली”…
मालजी की नगरी का भी क्या कहना..? देखिए ना इस बार सावन-भादो में भी दीपावली मन गई। कारण ? न कोई त्योहार, न सरकारी बोनस बस एक अफवाह!

अफवाह ये कि अधिकारी जी को एपीओ कर दिया गया है।
अब, मालजी की नगरी के हालात समझ लीजिए-
नारदमुनि की संतानों (यानी पत्रकार बिरादरी) का विरोध पांच दिन तक उबाल खाता रहा। कलमें बंद थीं, जैसे ग्रीष्मकालीन अवकाश हो। काली पट्टियाँ बंधीं, मुंह सिल गए, और ज्ञापन ऐसे सौंपे गए मानो क्रांति का बिगुल बज चुका हो।
इधर आंदोलन चल रहा था, उधर अफवाह ने सोशल मीडिया के पंख लगाकर उड़ान भरी। “अधिकारी जी गए… नारदमुनि की संतानों से बदतमीजी भारी पड़ गई… एपीओ हो गए !” बस इतना सुनना था कि मोहल्ले-मोहल्ले में मिठाई बांटने की तैयारी हो गई। दिहाड़ी मजदूर से लेकर व्यापारी तक, यहां तक कि पान की दुकान वाले ने भी उधारी माफ कर दी-खुशी के मारे !
लेकिन ये खुशी जरा नाजुक निकली। असलियत जब सामने आई, तो वही हुआ जो मॉल के ‘50% डिस्काउंट’ वाले बोर्ड देखकर होता है-खरीदने जाओ तो पता चलता है ‘शर्तें लागू’। अधिकारी जी तो अभी भी कुर्सी पर हैं, हां, नेताजी और राजधानी के चक्कर जरूर लगाने पड़े।
अब सोचने वाली बात ये है कि एक लोकसेवक की सिर्फ एपीओ होने की अफवाह से ही अगर जनता में लड्डू बंटने की नौबत आ जाए, तो क्या ये जनता की हालत का आईना नहीं है? क्या ये ‘लोकसेवक’ सच में सेवा कर रहे हैं या सिंहासन के सौंदर्य बढ़ाने का काम ?
वैसे, रुई वाले वंशज (जो हर बात को हल्का बनाने के आदी है) इस बार अफवाह से ही सदमे में चले गए। और कई अवैध कब्जेधारी भी अपने-अपने कागज़ संभालने लगे-कहीं अगली अफवाह ‘अवैध पर बुलडोज़र’ की न निकल जाए।
मालजी की नगरी का इतिहास गवाह है-यहां त्योहार कलेण्डर नहीं, बल्कि अफवाह तय करती है।
और इस बार की दीपावली, अधिकारी जी की मेहरबानी से, अगस्त में ही मन गई।
वाह ! रे एपीओ की अफवाह तूने तो बवाल मचा दिया।
व्यंग्य लेख – लेखक की कलम से…
राजस्थान लाइव न्यूज 24 Latest Online Breaking News